यह समस्या हुई थी
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उस्ताद को मई-2015 में सज्जनगढ़ के बायोलॉजिकल पार्क में लाया गया। इसके बाद से इसे नॉन डिस्प्ले एरिया में ही रखा गया। शुरुआत में तो इसके नजदीक जाने वाले सभी केयरटेकर को देखकर यह गुर्राता था। धीरे-धीरे यह शांत हुआ, लेकिन अनजान को देखकर उम्र के अंतिम पड़ाव तक गुर्राता था।
आजाद कराने के लिए हुए आंदोलन उस्ताद को जब कैद में रखने का निर्णय लिया गया तो कई वन्यजीव और बाघ प्रेमियों ने इसका विरोध किया। उदयपुर आने वाले कई पर्यटक उस्ताद के बारे में पूछा करते थे। इसको नॉन डिस्प्ले एरिया में रखने से इस बाघ को चाहने वाले लोग इसे कभी देख नहीं पाए।
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उस्ताद को उदयपुर लाने के बाद दिसंबर -2015 में उसे कब्ज की शिकायत हुई। इस पर उदयपुर के वन्यजीव प्रेमी चमनसिंह राठौड़ ने तत्कालीन वनमंत्री के उदयपुर दौरे के दौरान उस्ताद को रिहा करने की मांग की थी। ऐसा नहीं होने पर उन्होंने कलेक्ट्री के बाहर विरोध स्वरूप सिर मुंडवा दिया था। चमनसिंह का कहना है कि उस्तान ने आम पर्यटकों को कभी हमला नहीं किया। उसे बड़े बाड़े में रखने के आश्वासन भी कई बार दिए गए, लेकिन ताउम्र छोटे से बाड़े में ही गुजरी।
उदयपुर का सफर – 16 मई 2015 को लाए – 23 नवंबर 2015 को ‘उस्ताद’ को कब्ज की शिकायत सामने आई – 28 नवम्बर, 2015 को चिकित्सकों की टीम ने जांच में पाया कि ‘उस्ताद’ ने बीमारी की वजह से आहार लेना छोड़ दिया।