ना ही उक्त फर्जी वारिसों पर अब तक कार्रवाई की गई है। गत दिनों पाकिस्तान से भारत आए विस्थापितों को अरनिया केदार गांव में आवंटित भूमि का मामला कोतवाली थाने में दर्ज होने के बाद अब लोगों को उम्मीद बंधी है कि उनकी भी सुनवाई होगी। ऐसे में अब जिला प्रशासन के पास ऐसी शिकायतों की फेहरिश्त बढऩे लगी है। गुरुवार को हुई जन सुनवाई में ऐसी दो शिकायत आई है।
कई दस्तावेज फर्जी, फिर भी खुल गया नामांतरण
वर्ष 1955 में
टोंक निवासी मोहम्मद खां पुत्र वली मोहम्मद पाकिस्तान चले गए। उन्होंने अपनी कुरेड़ा गांव स्थित 66 बीघा जमीन 1954 में कुछ लोगों को बेच दी थी। इसके दस्तावेज भी ग्रामीणों के पास है। अब चौंकाने वाली बात यह है कि मोहम्मद खां तो पाकिस्तान चले गए। लेकिन अपनी दो पुत्रियां रईसुन्निसा व फरीदुन्निसा को टोंक ही छोड़ गए।
इसके बाद उक्त दोनों महिलाओं ने स्वयं को मोहम्मद खां की पुत्रियां बताते हुए जमीन का नामांतरण अपने नाम करा लिया। इससे पहले नगर परिषद के मनोनीत पार्षद तथा गांव के सरपंच से वारिस होने का प्रमाण-पत्र ले लिया।
जांच में सामने आया कि मनोनीत पार्षद अधिकृत नहीं है। वहीं, सरपंच ने प्रमाण-पत्र से इनकार कर दिया। शिकायत में जगदीश, नरेश, चौथमल, धर्मराज आदि ने बताया कि फर्जी दस्तावेज मामले की शिकायत करते डेढ़ साल हो गया। लेकिन उक्त आरोपियों पर कार्रवाई नहीं हुई।
ऐसा ही गंभीर मामला पीपलू के संदेड़ा फार्म गांव में सामने आया है। इसमें भी फर्जी वारिस बनकर जमीन का बेचान कर दिया गया। शिकायतकर्ता कृष्ण अवतार जाट ने बताया कि गांव में मोतीबाग टोंक निवासी वीरूमल के नाम जमीन थी। वीरूमल के कोई वारिस नहीं था।
ऐसे में कुछ लोग उसका दो मृत्यु प्रमाण-पत्र बनाकर लाए और रजिस्ट्रार कार्यालय में स्वयं को वारिस बताते हुए जमीन अपने नाम करा ली। बाद में उक्त जमीन को कई लोगों को बेच दी।
शिकायत के बाद पीपलू तहसीलदार ने जांच कराई तो सामने आया कि जिन वारिसों ने अपना पता टोंक का बताया था वो वहां मिले ही नहीं। ना ही उनके नाम के किसी व्यक्ति का पता चला। सिंधी समाज की पंचायत ने इसकी पुष्टि की। इसके बावजूद उक्त फर्जी वारिसानों पर कार्रवाई नहीं हुई। ना ही उक्त जमीन की रजिस्ट्री निरस्त की गई।