मासी बांध पीपलू उपखंड क्षेत्र की समृद्धि खुशहाली का प्रतीक है जो डेढ दशक में केवल 6 बार ही लबालब हुआ है, वहीं तीन बार चादर चली है। इसका मुख्य कारण जलभराव करने वाली नदियों के रास्ते में रोककर बनाए हुए दर्जनों एनिकट है। बुजुर्गों के अनुसार 1981 के बाद बांध भरने के बाद छोड़े गए पानी से मासी नदी अपने वास्तवित स्वरूप में नजर आई। बांध को भरने में सहायक
बांडी नदी भी अपने पूरे वेग से बही। जिसके चलते बांध लबालब हुआ हैं। बांध में मासी नदी के अलावा सहायक नदी बांडी, खेराखशी से इस बार अच्छी पानी की आवक हुई हैं। मासी बांध 2011 के बाद वर्ष 2019, 2022 में यह लबालब हुआ था।
डाउन स्ट्रीम को मुनादी करवा कर किया अलर्ट
उपखंड अधिकारी कपिल शर्मा ने बांध के ऑवरफ्लो होकर चादर चलने पर डाउन स्ट्रीम के लोगों को मुनादी करवाके अलर्ट जारी करवाया। चुराड़ा, मनोहरपुरा, रंभा, रामकिशनपुरा, बगड़ी से पीपलू रोड़ पर जलभराव क्षेत्र है। लोगों को अलर्ट रहकर जोखिम नहीं लेने का आह्वान किया गया है। साथ ही पटवारी, ग्राम विकास अधिकारियों को मुख्यालय पर उपस्थित रहकर लोगों को जोखिम भरे आवागमन से रोकने के निर्देश दिए।
किसानों ने आपस में मिठाई बांटकर खुशी का इजहार किया
किसानों में मासी बांध के लबालब होने के साथ ही खुशी की लहर दौड़ पड़ी। पीपलू में किसानों ने आपस में मिठाई बांटकर खुशी का इजहार किया। देवजी मंदिर में कई किसानों ने ढ़ोक लगाकर प्रसाद चढ़ाया। सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता कानाराम गुर्जर ने बताया कि मासी बांध के भरने से पीपलू उपखंड क्षेत्र के 29 गांवों के करीब 30 हजार से अधिक लोगों को फायदा मिलता हैं। बांध के भरने पर किसानों को रबी की फसल में सिंचाई के लिए नहर से पानी मिलता हैं। मासी बांध से पीपलू क्षेत्र में गहलोद तक 40 किलोमीटर लम्बी मुख्य नहर व दर्जनों वितरिकाएं बनी हुई है। जिससे क्षेत्र में 6985 हैक्टेयर जमीन पर रबी की फसल में सिंचाई की जाती है। जिससे क्षेत्र का किसान समृद्ध व खुशहाल होता है। 1960 में हुआ निर्माण, कब कितना आया पानी
मासी बांध का निर्माण पीपलू व निवाई तहसीलों की सीमा पर माशी, बांडी, खेराखशी नदियों का पानी रोककर 1960 ई. में पीपलू क्षेत्र के 29 गांवों की 28 हजार एकड़ भूमि को नहरों के जरिए सिंचित करने, निवाई की पेयजल समस्या को हल करने सहित जलीय जीवों का पालन करने को लेकर किया गया था। सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता कानाराम गुर्जर ने बताया कि दस फीट भराव क्षमता वाला मासी बांध 1991 से लेकर 1999 तक लगातार फुल भरता रहा है।
इसके बाद बांध में पानी की आवक को ग्रहण लग गई हो। वर्ष 2001 से 2003 बांध में प्रतिवर्ष करीब ढ़ाई फीट पानी की आवक हुई। वर्ष 2004 में बांध में 9 फीट पानी की आवक हुई। इसके बाद 2005 से 2009 तक फिर बांध में करीब 2.95 फीट पानी की आवक हुई हैं। वर्ष 2010 में बांध लबालब हुआ तथा बांध की चादर चली।
2011 में भी बांध भराव क्षमता के मुताबिक पूरा भर गया। 2012 से लेकर 2018 तक बांध पूरी तरह से नहीं भर पाया। मानसून की बेरूखी से वर्ष 2015, 2017, 2018 में बांध पूरी तरह से खाली रहा। वर्ष 2019 में मानसूम के झूम कर आने से पूर्ण भराव क्षमता 10 फीट तक भरने के बाद कई दिनों तक हल्की चादर चली थी। वहीं 2020 में फिर से बांध खाली रह गया तथा 2021 में 7 फीट ही पानी आ पाया था। वर्ष 2022 में बांध की चादर चली तथा 2023 में साढ़े 7 फीट पानी की आवक हुई थी।