बच्ची का शव घटना के अगले दिन जंगल में मिला। जंगली जीव ने गुरुवार रात एक महिला पर हमला कर दिया। इसमें वह घायल हो गई। जागरूक नहीं होने से मजदूर इसकी सूचना प्रशासन को नहीं दे पाए हैं। ऐसे में प्रशासन और वन विभाग अब तक उनकी मदद नहीं कर पा रहा है। सूचना मिलने के बाद पत्रिका टीम पालड़ा गांव में नहर किनारे रहने वाले श्रमिकों तक पहुंची। जहां उन्होंने अपनी पीड़ा बयान की।
किरण और उसका पति छत्रपाल जब मजदूरी के लिए पालड़ा आए थे। तब किरण गर्भ से थी। यहां आने के बाद उसने पुत्री को जन्म दिया। अब किरण अपने पांच माह की मासूम को लेकर सदमे में है। वह मासूम को याद कर रोने लगती है।
आदम खोर की ओर से किए गए हमले के बाद ढेरे में रहने वाले लोग सहमे हुए है। वे अब रातभर वहां बार-बार से पहरेदारी करते हैं। ताकि उन पर कोई हमला नहीं करे। साथ ही बच्चों को ईंटों से बनाए गए कक्ष में सुला रहे रहे हैं।
दरअसल ईंट भट्टे पर काम करने वाले मजदूर पीपरथरा तहसील फरीदपुर जिला बरेली उत्तर प्रदेश निवासी है। जो करीब 250 की संख्या में और समूह में अलग-अलग ढेरों में रहते हैं। यह लोग ईंट भट्टे पर मजदूरी करने के लिए करीब 8 महीने पहले आए हैं।
ईंट भट्टे पर काम करने के लिए भट्टा संचालक मजदूरों को देशभर से ले तो आते हैं। लेकिन ना तो उन्हें आशियाना मुहैया करा पाते और ना ही उनकी सुरक्षा का कोई बंदोबश्त कर पाते। ऐसे में पेट की आग बुझाने के लिए यह मजदूर बिना सुविधा जमीन पर ही कुछ बिछाकर सोने और रहने को मजबूर है। जबकि श्रम विभाग के नियमानुसार मजदूरों को पूरी सुविधा मिलनी चाहिए। ईंट भट्टों पर ऐसा नहीं हो रहा है।
जानवर को देखा तो वह नहीं मिला। बाद में अपने स्तर पर ही घायल मीरा का उपचार किया। सुबह उसे अस्पताल में भर्ती कराया।
पालड़ा और उसके समीप नहर किनारे किसी पर हमला करने की सूचना नहीं है। ऐसा है तो वहां जाकर मौका देखा जाएगा।
विक्रम शर्मा, नाका प्रभारी, वन विभाग, टोंक