दो हजार साल पहले थे शासक
बताया जाता है कि करीब दो हजार वर्ष पहले राजा मुचकुंद शासक थे। नगरफोर्ट कस्बा मालवा शासन की राजधानी हुआ करती थी। राजा मुचकुंद शिव भक्त थे। उन्होंने नगरफोर्ट के पास से गुजर रही गलवा नदी किनारे रोजाना बालू रेत का शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की भक्ति करते थे। एक बार राजा मुचकुंद छह माह तक नदी किनारे बालू रेत का शिवलिंग बनाकर शिव की भक्ति की। मंदिर के पुजारी बंशी लाल राव, गोपाल राव ने बताया कि उस समय भगवान शिव राजा मुचकुंदेश्व की तपस्या से खुश होकर उसे शिवलिंग में प्रकट होकर दर्शन दिए। बाद में राजा ने सोचा कि अब इस शिवलिंग का शृंगार कैसे हो इसका समाधान करने के लिए राजा ने मथुरा वृंदावन से विद्वानों को बुलाया था। तब विद्वान आए और बालू रेत का शिवलिंग देखकर हैरत में पड़ गए। उन्होंने शास्त्रों के अनुसार इस बालू रेत के शिवलिंग में शिव के साथ पार्वती का वास मानकर इसे अर्धनारीश्वर या गौरीशंकर भी नाम दिया और इसका सिंदूर का चोला चढाने को कहा। उसके बाद से ही इस शिवलिंग पर सिंदूर का चोला चढाया जा रहा है। फिर पास में ही राजा ने करीब एक बीघा में मंदिर बनाया और वहीं सवा पांच फीट ऊंचाई व ढाई फीट आकार का बालू रेत का शिवलिंग बनाकर सिंदूर का चोला चढ़ाया जाने लगा।
नगरफोर्ट के मुचकुंदेश्वर महादेव मंदिर में परंपरा सालों से चली आ रही है।यह मंदिर प्रसिद्ध है। मंदिर स्थित बालू रेत से बना शिवलिंग अनोखा है। गणेशजी, हनुमानजी, भैरूजी, देवताओं की मूर्ति के ही सिंदूर का चोला चढ़ता है। इसी शिवलिंग की पूजा और चोला चढ़ाने के लिए लोग दूर-दराज से आते हैं।
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राजा मुचकुंद केतप से जल जाता सामने आने वाला
किवदंती है कि राजा मुचकुंद की तपस्या में जोरदार तप था। वे छह-छह माह तक तपस्या करते रहते थे। तपस्या के बाद जैसे वे आंखे खोलते थे। उस दौरान कोई सामने आ जाता तो वह जलकर भस्म हो जाता था। एक बार तो उन्होंने तपस्या के बाद आंखें खोली तो कालिया नाम का राक्षस सामने आ गया तो वह जलकर भस्म में गया।
पीढ़ी दर पीढ़ियां कर रहे हैं सेवा
पुजारी शिवनंदन शर्मा ने बताया कि हमारे पूर्वज राजा के करीबी और विश्वास पात्र थे। सदियों से मंदिर की पूजा का काम पीढ़ी दर पीढ़ी करते आ रहे हैं। इसके बदले 51 बीघा जमीन रोजगार की दृष्टि से दे रखी है।