विभाग के मुताबिक टोंक जिले की देवली तहसील के ग्राम भगवानपुर, थांवला, बिजवाड़, श्रीनगर, मालेडा, नासिरदा आदि गांवों में जीरा एवं सौंफ के खेतों का निरीक्षण उपनिदेशक उद्यान डॉ. राजेंद्र सामोता, सहायक कृषि अधिकारी लेखराज बैरवा, कृषि पर्यवेक्षक उद्यान के जयदीप ङ्क्षसह सोलंकी एवं कृषि पर्यवेक्षक जय ङ्क्षसह मीणा ने किया। क्षेत्र किसानों से संपर्क किया।
यह दी सलाह कृषि अधिकारियों ने जिले के जीरा उत्पादक किसानों को सलाह दी है की रोग के लक्षण दिखाई देने पर डाइफनोकोनाजोल का 0.5 एमएम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड$काव करेंं। दूसरा एवं तीसरा छिड$काव 15 दिन के अंतराल पर दोहराव इसके साथ ही जीरे की फसल में छाछया रोग लगने की संभावना भी रहती है।
गंधक के चूर्ण का भुरकाव करे इस रोग में पौधों की पत्तियों पर सफेद चूरण दिखाई देने लगता है। रोक की रोकथाम ना की जाए तो पौधों पर पाउडर की मात्रा बढ़ जाती है। यदि रोग का प्रकोप जल्दी हो गया हो तो बीज नहीं बनते हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए गंधक का चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें या घुलनशील गंधक का चूर्ण ढाई किलो प्रति हैक्टेयर के दर से छिड$काव किया जाए।
झुलसा रोग की आशंका वर्तमान में जीरे की फसल लगभग 60 से 70 दिन की हो चुकी है एवं फसल में फूल आ रहे हैं। जीरे की फसल में फूल आना शुरू होने के बाद अगर आकाश में बादल छा रहे हो तो झुलसा रोग लगने की संभावना बढ़़ जाती है। रोग के प्रकोप से पौधे के सिर झुके हुए नजर आने लगते हैं। रोग में पौधों की पत्तियां एवं तनों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है। रोग इतनी तेजी से फैलता है कि रोग के लक्षण दिखाई देते ही नियंत्रण कार्य नहीं कराया जाए तो फसल को नुकसान से बचना मुश्किल हो जाता है। जिले में लगभग 750 हैक्टेयर में जीरा एवं 600 हैक्टेयर में सौंफ का क्षेत्रफल है।