scriptअमर प्रेम की अनुपम निशानी हाड़ीरानी कुण्ड | Amar Prem Ki Anupam Nishani Hardirani Kund | Patrika News
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अमर प्रेम की अनुपम निशानी हाड़ीरानी कुण्ड

ऐतिहासिक वैभव का साक्षी व अटूट प्रेम की निशानी हाड़ीरानी का कुण्ड अपनी निर्माण, बेजोड़ता व वास्तुकला के लिए आज भी दूर-दूर तक प्रसिद्ध है।

टोंकFeb 14, 2019 / 10:26 am

MOHAN LAL KUMAWAT

Hardir Kund

टोडारायसिंह कस्बे में अटूट प्रेम की निशानी हाडी रानी कुण्ड।

टोडारायसिंह. टोडारायसिंह के ऐतिहासिक वैभव का साक्षी व अटूट प्रेम की निशानी हाड़ीरानी का कुण्ड अपनी निर्माण, बेजोड़ता व वास्तुकला के लिए आज भी दूर-दूर तक प्रसिद्ध है।


कस्बे के निकट स्थित यह कुण्ड, रानी की कमठाण (याद) में निर्मित है। करीब पांच बीघा क्षेत्रफल में शिलाखण्डों को कलात्मक ढंग से जमवाकर निर्माण कराए गए इस कुण्ड की बेजोड़ता सैलानियों को आकर्षित करती है।
इतिहासकारों का कहना है कि विक्रम सम्वत 1398 (ईस्वी 1342) में टोडा के शासक राव रुपाल ने बूंदी के देवा हाड़ा की पुत्री हाड़ीरानी से शादी की थी।

शादी के बाद वर्षगांठ में अटूट प्रेम को यादगार बनाने के लिए उसी सम्वत् में अपने नाम से रानी हाड़ी ने यह कुण्ड बनवाया था।

यह है कुण्ड का वैभव
यह कुण्ड अपनी अनुठी निर्माण कला के लिए देश भर में प्रसिद्ध है। इस कुण्ड में सैकड़ों सीढिय़ां बनी हुई है, जिन पर कोई भी व्यक्ति जिस सीढ़ी से नीचे उतरता है। उनसे वापस नहीं चढ़ नहीं पाता है।
कुण्ड के तीन और ढलान के रूप में भूल-भूलैया सीढिय़ां है। वहीं पश्चिम दिशा में तिबारे निर्मित है। दो मंजिल के निर्मित तिबारों में सात-सात दरवाजे, तथा करीब दो-दो मीटर लम्बे छज्जे लगे है।
तिबारो के नीचे कुण्ड में झांकती गणेश प्रतिमा लगी है। करीब सात सदी पुराना होने के बावजूद यह कुण्ड आज भी दृढ़ता के साथ खड़ा है। उक्त स्थल पर प्राचीन काल में लम्बी यात्रा के बीच राजशाही बारातो का ठहराव हुआ करता था।
प्राचीन कहानीकार विजयदान देथा की कहानी पर आधारित फिल्म पहेली में एक बार फिर विरासत की यादे ताजा हुई। इसमें पहले राजा महाराजाओं का बारातें ठहरा करती थी, फिल्मांकन में फिल्मी सितारों की बारातों के ठहराव का फिल्मांकन हुआ।

पहेली फिल्म से मिली पहचान
अटूट प्रेम की निशानी हाड़ी रानी बावड़ी यूं तो टोडा शासक राव रूपाल व बूंदी हाड़ा राजा की पुत्री से शादी की यादगार में बनवाई थी, लेकिन टोडारायसिंह के ऐतिहासिक बावड़ी को फिल्म पहेली से एक नई पहचान मिली।
फिल्म जगत में पहली बार बावडिय़ों की वास्तुकला से प्रभावित होकर फिल्म पहेली का फिल्मांकन यहां हुआ। पांच मार्च 2004 में टोडारायसिंह स्थित हाड़ी रानी कुण्ड पर फिल्म अभिनेता शाहरूख खान व रानी मुखर्जी अभिनीत
फिल्म पहेली के दृश्यों का फिल्मांकन निर्देशक अमोल पालेकर ने किया था।
ऐसे अमर हो गया प्रेम
इतिहासकारों का कहना है कि विक्रम सम्वत 1398 (ईस्वी 1342) में जेता मीणा ने बूंदी के शासक देवा हाड़ा को पराजित कर कले पर कब्जा कर लिया तथा वह देवा हाड़ा की पुत्री हाड़ीरानी से विवाह करना चाहता था।
इधर, टोडा का शासक राव रूपाल तत्कालीन एक लड़ाका था। हाड़ीरानी के मदद मांगने पर टोडा शासक राव रूपाल ने बूंदी के मीणों को हराकर देवा हाड़ा को फिर से बूंदी का राज सौंपा था।
इससे प्रभावित होकर हाड़ीरानी, राव रूपाल से प्रेम करने लगी तथा बाद में शादी की। शादी की वर्षगांठ में अटूट प्रेम को यादगार बनाने को लेकर उसी सम्वत् में अपने नाम से रानी हाड़ी ने उक्त कुण्ड का निर्माण करवाया।
कस्बानिवासी सेवानिवृत अध्यापक दिनेश शर्मा बताते है कि इस कुण्ड का निर्माण हाड़ीरानी कंचुकी (कांचली) के आधे भाग में जडि़त हीरो-पन्नों की लागत से कराया गया था। रानी की कंचुकी में जडि़त हीरे इतने मूल्यवान थे कि उनकी कीमत से इस कुण्ड का निर्माण हुआ।

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