टीकमगढ़. इन दिनों मध्यवर्गीय लोगों को घर बनाना आसान नहीं है। महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी है। पिछले एक महीने में जमीन, रेत, गिट्टी, लोहा, सीमेंट और मजदूरों के दामों में बढोत्तरी देखी गई है। हालांकि पिछले वर्ष लोहा ७० रुपए केलो था, इस समय ६० रुपए किलो बाजार में अलग-अलग कंपनियां बेच रही है। कुशल और अकुशल मजदूरों के दामों में इजाफा देखा गया है। सरकारी आवास और निजी घर बनाने में लोगों को पसीना छूट रहा है। कर्ज तले दबे रहने से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
जिले में तीन साल से रेत की खदानें बंद पड़ी है। डस्ट और मिट्टी की बनी रेत के दाम भी नदी वाली रेत के दामों को टक्कर दे रही है। हालांकि नदी रेत के दाम एक गुना अधिक है। गिट्टी, सीमेंट और ईट में भी बढोत्तरी देखी गई है। वहीं मजदूर ५०० रुपए से ७५० रुपए और कारीगर १००० रुपए एक दिन के ले रहा है। इस महंगाई को देखकर घर और आवास बनाने वाले हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है। सरकारी आवास की राशि भी कम पड़ रही है।
जिले में तीन साल से रेत की खदानें बंद पड़ी है। डस्ट और मिट्टी की बनी रेत के दाम भी नदी वाली रेत के दामों को टक्कर दे रही है। हालांकि नदी रेत के दाम एक गुना अधिक है। गिट्टी, सीमेंट और ईट में भी बढोत्तरी देखी गई है। वहीं मजदूर ५०० रुपए से ७५० रुपए और कारीगर १००० रुपए एक दिन के ले रहा है। इस महंगाई को देखकर घर और आवास बनाने वाले हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है। सरकारी आवास की राशि भी कम पड़ रही है।
यह मकान सामग्री के दाम
ग्रामीणों ने बताया कि महंगाई ने इतनी ज्यादा कमर तोड़ दी कि घर और सरकारी आवास बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। कानपुरी ईट की कीमत ७ रुपए और देशी ईट की कीमत ४ रुपए है। सीमेंट में ३३० रुपए से लेकर ३३५ रुपए बोरी, लोहा ६० रुपए किलो के साथ सेटरिंग के दाम भी बढ़ गए है। उन्होंने बताया कि कुशल और अकुशल मजदूरों के दाम भी कुछ ही दिनों में बढ़ गए है।
ग्रामीणों ने बताया कि महंगाई ने इतनी ज्यादा कमर तोड़ दी कि घर और सरकारी आवास बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। कानपुरी ईट की कीमत ७ रुपए और देशी ईट की कीमत ४ रुपए है। सीमेंट में ३३० रुपए से लेकर ३३५ रुपए बोरी, लोहा ६० रुपए किलो के साथ सेटरिंग के दाम भी बढ़ गए है। उन्होंने बताया कि कुशल और अकुशल मजदूरों के दाम भी कुछ ही दिनों में बढ़ गए है।
मटेरियल के बढ़े दाम
मटेरियल सप्लायर राकेश कुशवाहा ने बताया कि तीन सालों से जिले की रेत खदानें बंद पड़ी है। घर और आवास निर्माण में सबसे अधिक डस्ट और मिट्टी से बनने वाली रेत का उपयोग किया जा रहा है। डस्ट की रेत २ हजार रुपए ट्राली, मिट्टी की रेत ३ हजार रुपए ट्राली और नदी की रेत ५ हजार रुपए ट्राली और गिट्टी १७०० रुपए ट्राली बेची जा रही है। जबकि तीन महीने पहले इन सभी सामग्री के दाम ५०० रुपए से लेकर ८०० रुपए कम थे।
मटेरियल सप्लायर राकेश कुशवाहा ने बताया कि तीन सालों से जिले की रेत खदानें बंद पड़ी है। घर और आवास निर्माण में सबसे अधिक डस्ट और मिट्टी से बनने वाली रेत का उपयोग किया जा रहा है। डस्ट की रेत २ हजार रुपए ट्राली, मिट्टी की रेत ३ हजार रुपए ट्राली और नदी की रेत ५ हजार रुपए ट्राली और गिट्टी १७०० रुपए ट्राली बेची जा रही है। जबकि तीन महीने पहले इन सभी सामग्री के दाम ५०० रुपए से लेकर ८०० रुपए कम थे।
मजदूरों के भी बढ़ दाम
कारीगर सुखलाल राजपूत, प्रेमचंद्र कुशवाहा और सुरेश अहिरवार ने बताया कि गांव, शहर और बाहर इन तीनों स्थानों की मजदूरी में अंतर है। बाहर कारीगर कुशल मजदूर को ८०० रुपए और अकुशल को ५५० रुपए तक मिलते है। गांव में कारीगर को ६०० रुपए और लेबर को ४०० रुपए, शहर में कारीगर को ६५० रुपए और लेबर को ५०० रुपए एक दिन की मजदूरी मिल जाती है। जबकि सरकारी कागजों में कारीगर के ४५० रुपए और लेबर को २४३ रुपए दी जा रही है।
कारीगर सुखलाल राजपूत, प्रेमचंद्र कुशवाहा और सुरेश अहिरवार ने बताया कि गांव, शहर और बाहर इन तीनों स्थानों की मजदूरी में अंतर है। बाहर कारीगर कुशल मजदूर को ८०० रुपए और अकुशल को ५५० रुपए तक मिलते है। गांव में कारीगर को ६०० रुपए और लेबर को ४०० रुपए, शहर में कारीगर को ६५० रुपए और लेबर को ५०० रुपए एक दिन की मजदूरी मिल जाती है। जबकि सरकारी कागजों में कारीगर के ४५० रुपए और लेबर को २४३ रुपए दी जा रही है।
फैक्ट फाइल
३५५ रुपए सीमेंट बोरी
६० रुपए किलो लोहा
६५० रुपए कुशल मजदूर
५०० रुपए अकुश मजदूर
४ रुपए प्रति ईट
२ हजार रुपए एक ट्राली डस्ट
३ हजार रुपए एक ट्राली मिट्टी की रेत
५ हजार रुपए एक ट्राल नदी की रेत
३५५ रुपए सीमेंट बोरी
६० रुपए किलो लोहा
६५० रुपए कुशल मजदूर
५०० रुपए अकुश मजदूर
४ रुपए प्रति ईट
२ हजार रुपए एक ट्राली डस्ट
३ हजार रुपए एक ट्राली मिट्टी की रेत
५ हजार रुपए एक ट्राल नदी की रेत