ग्रामीणों ने बताया कि महंगाई ने इतनी ज्यादा कमर तोड़ दी कि घर और सरकारी आवास बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। कानपुरी ईट की कीमत ७ रुपए और देशी ईट की कीमत ४ रुपए है। सीमेंट में ३३० रुपए से लेकर ३३५ रुपए बोरी, लोहा ६० रुपए किलो के साथ सेटरिंग के दाम भी बढ़ गए है। उन्होंने बताया कि कुशल और अकुशल मजदूरों के दाम भी कुछ ही दिनों में बढ़ गए है।
मटेरियल सप्लायर राकेश कुशवाहा ने बताया कि तीन सालों से जिले की रेत खदानें बंद पड़ी है। घर और आवास निर्माण में सबसे अधिक डस्ट और मिट्टी से बनने वाली रेत का उपयोग किया जा रहा है। डस्ट की रेत २ हजार रुपए ट्राली, मिट्टी की रेत ३ हजार रुपए ट्राली और नदी की रेत ५ हजार रुपए ट्राली और गिट्टी १७०० रुपए ट्राली बेची जा रही है। जबकि तीन महीने पहले इन सभी सामग्री के दाम ५०० रुपए से लेकर ८०० रुपए कम थे।
कारीगर सुखलाल राजपूत, प्रेमचंद्र कुशवाहा और सुरेश अहिरवार ने बताया कि गांव, शहर और बाहर इन तीनों स्थानों की मजदूरी में अंतर है। बाहर कारीगर कुशल मजदूर को ८०० रुपए और अकुशल को ५५० रुपए तक मिलते है। गांव में कारीगर को ६०० रुपए और लेबर को ४०० रुपए, शहर में कारीगर को ६५० रुपए और लेबर को ५०० रुपए एक दिन की मजदूरी मिल जाती है। जबकि सरकारी कागजों में कारीगर के ४५० रुपए और लेबर को २४३ रुपए दी जा रही है।
३५५ रुपए सीमेंट बोरी
६० रुपए किलो लोहा
६५० रुपए कुशल मजदूर
५०० रुपए अकुश मजदूर
४ रुपए प्रति ईट
२ हजार रुपए एक ट्राली डस्ट
३ हजार रुपए एक ट्राली मिट्टी की रेत
५ हजार रुपए एक ट्राल नदी की रेत