script130 क्विंटल धतूरा, बेलपत्र व फू ल चढ़ेगे, 1950 लीटर दूध दही और 150 लीटर शहद से होंगे 2400 अभिषेक | 130 quintals of dhatura, bel leaves and fruits will be offered, 2400 abhishek will be done with 1950 liters of milk, curd and 150 liters of honey | Patrika News
टीकमगढ़

130 क्विंटल धतूरा, बेलपत्र व फू ल चढ़ेगे, 1950 लीटर दूध दही और 150 लीटर शहद से होंगे 2400 अभिषेक

भगवान भोलेनाथ

टीकमगढ़Jul 25, 2024 / 12:14 pm

akhilesh lodhi

भगवान भोलेनाथ

भगवान भोलेनाथ

पहले श्रवण मास सोमवार से अंतिम सोमवार तक पांच लाख श्रद्धालु से अधिक करेंगे भगवान भोलेनाथ के दर्शन

टीकमगढ. कुण्डेश्वर में इस बार 22 जुलाई से श्रमण मास के सावन सोमवार २२ जुलाई से शुरू हो गए और शिवधाम कुंण्डेश्वर में स्वयं भू भगवान भोलेनाथ के पांच लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन करेंगे। पहली बार 130 क्विंटल बेलपत्र, धतूरा और फ ूल अर्पित होंगे। वहीं 1950 लीटर दूध, दही और 150 लीटर शहद से 2400 से अधिक अभिषेक कराए जाएंगे। वहीं 29 दिनों में इतनी ही पोशाकें बदली जाएंगी। फू ल, बेलपत्र और धतूरा से खाद बनाया जाएगा। जिससे पौधरोपण और खेती में उपयोग किया जाएगा। हर साल यहां आस्था के साथ भीड़ बढ़ती जा रही है। इससे 20 प्रतिशत कम पूजन सामग्री पिछले वर्ष यहां चढ़ी थी, इस बार एक सोमवार बढऩे के कारण पूजन सामग्री की मात्रा बढ़ेगी।
मंदिर के पुजारी पंडित जमुना प्रसाद तिवारी और पंडित बृजामोहन त्रिपाठी ने बताया कि इस बार 22 जुलाई से 19 अगस्त तक पांच श्रवण मास के सावन सोमवार होंगे। प्रत्येक सोमवार को 50 हजार से अधिक श्रद्धालुओं के आने संभावना है। जो श्रद्धालु सोमवार को भगवान भोलेनाथ के दर्शन नहीं कर पाते, वह मंगलवार और सप्ताह के अन्य दिनों में दर्शन करने आते है। 29 दिनों में पांच लाख से अधिक श्रद्धालुओं के आने की संभावना है।
धतूरा और बेल पत्र फूल से बनेगा खाद
सुरेंद्र सिंह भदौरिया ने बताया कि भगवान भोलेनाथ को अर्पित होने वाले धतूराए बेलपत्र और फू ल को वर्मी कंपोस्ट में रखकर खाद बनाया जाएगा। उस खाद को मंदिर मैदान में रोपण किए जाने वाले पौधे और पार्क में उपयोग किया जाएगा। इसके साथ ही खेतों में भी उपयोग किया जाएगा। सोमवार से अब तक १५ से २० क्विंटल के लगभग धतुरा, बेलपत्र और फूल सामग्री अर्पित हो गए है।
यह है कुंण्डेश्वर का इतिहास
श्रृद्धालु सुरजपुर निवासी देवेंद्र यादव, पहाड़ी तिलवारन निवासी रामेश्वर यादव और मिनौरा निवासी जुगलबाबू अहिरवार ने बताया कि स्वयं भू भगवान कुण्डेश्वर समूचे क्षेत्र में तेरहवें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। स्वयंभू भगवान कुण्डेश्वर की द्वापर युग से पूजा की जा रही है। पौराणिक काल द्वापर युग में दैत्य राजा बाणासुर की पुत्री ऊषा ने यहां भगवान शिव की तपस्या की थी। वर्तमान में भी किवदंती है कि ऊषा आज भी भगवान शिव को जल अर्पित करने आती हैं। इसका जीता.जागता प्रमाण स्वयं प्रतिवर्ष चावल के बराबर बढऩे वाला शिवलिंग है।
ओखली में धान कूटते समय सामने आए भगवान
बताया गया कि संवत 1204 में यहां पर धंतीबाई नाम की एक महिला पहाड़ी पर रहती थी। पहाड़ी पर बनी ओखली में एक दिन वह धान कूट रही थी। उसी समय ओखली से रक्त निकलना शुरू हुआ तो वह घबरा गई। ओखली को अपनी पीलत की परात से ढक कर वह नीचे आई और लोगों को यह घटना बताई। लोगों ने तत्काल इसकी सूचना तत्कालीन महाराजा राजा मदन वर्मन को दी। राजा ने अपने सिपाहियों के साथ आकर इस स्थल का निरीक्षण किया तो यहां पर शिवलिंग दिखाई दिया। इसके बाद राजा वर्मन ने यहां पर पूरे दरबार की स्थापना कराई।

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