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मंदिर

यक्षों और गंधर्वों का बनाया गुफा मंदिर, यहां आज भी मौजूद है

– भगवान पुराण के अनुसार यहां कौशिकी देवी ने शुंभ और निशुंभ राक्षसों का वध किया था।

Nov 20, 2022 / 07:45 pm

दीपेश तिवारी

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हरे-भरे जंगलों से घिरा एक मंदिर पहाड़ी की चोटी से निकला है और शिव मंदिर के बगल में स्थित है। इस मंदिर के संबंध में स्कंद पुराण में कहा गया कि, यह गुफा मंदिर यक्षों और गंधारों द्वारा बनाया गया था, जबकि देवी भगवान पुराण इस स्थान को उस स्थान के रूप में चिह्नित करता है जहां कौशिकी देवी ने शुंभ और निशुंभ राक्षसों का वध किया था।

दरअसल आज हम बात कर रहे हैं देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित कसार देवी मंदिर के बारे में जहां मंदिर के अंदर मूर्ति के पीछे चट्टान पर देवी दुर्गा के शेर की छाप है। आज दिखाई देने वाली मंदिर की यह संरचना 1948 में विकसित हुई थी।

आपको जानकार आश्चर्य होगा कि कासार देवी पृथ्वी की वैन एलेन बेल्ट पर विराजमान हैं, स्थानीय लोगों के अनुसार इस क्षेत्र की जांच के लिए नासा के विशेषज्ञ इस अनूठे भू-चुंबकीय क्षेत्र को समझने के लिए यहां आए थे, जिस पर यह विचित्र मंदिर स्थित है। स्थानीय लोग मंदिर में अपने मन को शांत करने के लिए यहां ध्यान लगाने का सुझाव देते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह वही ऊर्जा है जो मनीषियों, दार्शनिकों और आध्यात्मिक साधकों को कसार तक ले आई। यहां तक की स्वामी विवेकानंद, बॉब डायलन, रवींद्रनाथ टैगोर और डीएच लॉरेंस कुछ ऐसे प्रसिद्ध नाम हैं जिन्होंने कसार को अपना पिटस्टॉप बनाया।

कसार देवी मंदिर की यह गुफा 1890 में स्वामी विवेकानंद के लिए ध्यानस्थल थी, जहां से उन्होंने अपने अनुभव लिखे थे। एक स्थानीय गाइड हमें बताता है कि कैसे, उच्चतम आध्यात्मिक अनुभवों के करीब होने के बावजूद, स्वामी विवेकानंद ने दुनिया को दुख से बचाने में मदद करने के लिए अपने आध्यात्मिक आनंद को त्याग दिया।

कसार देवी ऐसे पहुंचें
पंतनगर अल्मोड़ा का निकटतम हवाई अड्डा है। इसके अलावा नई दिल्ली और काठगोदाम के बीच दैनिक शताब्दी भी ले सकते हैं, जहां से कैब आपको 4 घंटे में कसार देवी तक पहुंचा सकती है। मंदिर सड़क मार्ग से दिल्ली से लगभग 400 किमी दूर है। इसके अलावा लखनउ से हल्द्वानी ट्रेन से होते हुए भी आप यहां हल्द्वानी के बाद कैब से कसार देवी पहुंच सकते हैं।

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