कुंडल गिरी कोनी जी विंध्याचल पर्वत श्रृंखला के भांडेर पर्वत की तलहटी में बहती हिरण नदी के निकट बसा है। इतिहास और पुरातत्व के जानकार पंडित बलभद्र जैन ने लेख में बताया है कि कुंडल गिरी कोनी जी का संपूर्ण पुरातत्व 11वीं एवं 12वीं शताब्दी का प्रतीत होता है। सहस्त्रकूट चैत्यालय और नंदीश्वर जिनालय भी समकालीन अथवा उत्तर कालीन लगते हैं।
13 की खोज, 9 का जीर्णोद्धार हुआ
लोगों के अनुसार सबसे अच्छी बात यह है कि यहां के मंदिर अपने मूल स्वरूप में आज भी मौजूद व सुरक्षित हैं। जबकि वे जीर्णशीर्ण हो गए थे इसके बावजूद इस रूप में भी तत्कालीन इतिहास और कला को अपने में संजय हुए खड़े रहे, हालांकि अब इनका जीर्णोद्धार हो चुका है।
इसके अलावा क्षेत्र के आसपास प्राचीन मंदिरों की शिलाएं, स्तंभ तथा अन्य सामग्री बिखरी पड़ी है। जैनियों के स्वर्णिम काल में कोनी जी तीर्थ में कितने मंदिर रहे इसका कोई साक्ष्य नहीं है। सन 1934 में भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी बंंबई के प्रचारक पन्नालाल जैन ने अपनी रिपोर्ट लिखा कि क्षेत्र में 13 मंदिरों के दर्शन किए, जबकि फरवरी 1944 में गठित जीर्णोद्धार समिति को मात्र 9 जिनालय मिले थे अर्थात मात्र 10 वर्षों में 4 मंदिर और धराशाई हो चुके थे।
कलात्मक शैली के कारण मशहूर
कोनी जी में कुछ मंदिरों और मूर्तियों पर 10 वीं – 11 वीं शताब्दी की कलचुरी कालीन कला का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित है। यहां प्रतिमाएं पद्मासन और कायोत्सर्गासन दोनों ध्यान आसनों में देखी जा सकती हैं। सप्तफणावली मंडित श्वेत पाषाण की 4 फीट पद्मासन भगवान पाश्र्वनाथ की भव्य चित्ताकर्षण प्रभाव उत्पादक प्रतिमा मूल रूप में विराजमान है। इन्हें विघ्नहर चिंतामणि पार्श्वनाथ भक्तों द्वारा कहा जाता है।
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विशेष उल्लेखनीय रचनाओं में सहस्त्रकूट चैत्यालय एवं नंदीश्वरदीप की रचनाएं हैं जो अपनी कलात्मक शैली के कारण अत्यंत कलापूर्ण बनाई गई हैं। इतिहासकारों की मानें तो इस प्रकार की शैली के जिनालय अन्य कहीं और देखने नहीं मिलते हैं।
आज भी रहस्य है गर्भ ग्रह में
जैनधर्मियों के अनुसार यहां का गर्भ ग्रह मंदिर जिसे सहस्त्रकूट जिनालय कहते हैं अपने विशिष्ट बनावट और रहस्य के लिए जाना जाता है। ये आज भी कौतूहल का विषय है। यहां शीत ऋतु में इस मंदिर में प्रवेश करने पर ठंड के बजाए गर्मी का एहसास होता है, वहीं गर्मी के दौरान यह अत्यंत शीतलता प्रदान करने वाला महसूस होता है।
इसके अलावा सहस्त्रकूट चैत्यालय के सभी फलक एक अष्टकोणीय चबूतरे में जोड़े गए हैं। जिनकी मूर्तियों का योग 1008 है। यक्षिणी एवं पद्मावती की प्रतिमाएं भी बेहद सुंदर हैं। यह मूर्तियां कलचुरी कालीन उत्कृष्ट कला का प्रतीक हैं। वर्तमान शासन नायक तीर्थंकर महावीर स्वामी की खडग़ासन प्रतिमा दक्षिणात्य जैन कला का नमूना है।