दुनिया में यह इकलौता मन्दिर है, जहां बजरंग बली की करीब बीस फिट लेटी हुई प्रतिमा को पूजा जाता है। हनुमान मंदिर के बारे में अनेक किंवदंतियां हैं। कन्नौज के एक नि:संतान अमीर व्यपारी ने मनोकामना पूरी के लिए एक हनुमान की मूर्ति बनवाई और उसे अपने साथ लेकर उत्तरी उपमहाद्वीप की ओर तीर्थ यात्रा पर निकल गए। यात्रा के दौरान जब वह संगम तट पहुंचे और मूति को स्नान करा रहे थे तभी उनके हाथ से मूर्ति गंगा में छूट गई और उनसे नहीं उठी। इस पर वह निराश हो गए और वहीं रूक गए।
इतिहासकारों के अनुसार हनुमान जी की इस प्रतिमा को औरंगजेब ने अपने शासन काल में यहां से हटवाने का प्रयास किया था। करीब 100 सैनिकों को इस प्रतिमा को यहां स्थित मन्दिर से हटाने के लिए लगा दिया था। कई दिनों तक प्रयास करने के बाद भी प्रतिमा टस से मस न हो सकी। सैनिक गंभीर रूप से बीमार पड गए। औरंगजेब ने संत बालागिरी से माफी मांगी और उनसे अपनी सेना को ठीक करने की प्रार्थना की। उसके बीमार सैनिक ठीक हो गए। औरंगजेब इस चमत्कार को देख दंग रह गया और हनुमानजी से हार मानकर उनकी प्रतिमा को बिना छेड़छाड़ किए आगे बढ गया।
संगम तट स्थित हनुमान प्रतिमा वीर मुद्रा में है जिनके बड़े हाथ और बलिष्ठ शरीर है। हनुमान भक्त इस हनुमान प्रतिमा को देखकर वीररस से भर जाते है । कथाओं के अनुसार मंदिर में हनुमानजी के दाये पैर के नीचे अहिरावण और बायें पैर के नीचे अहिरावन की आराध्य देवी कमादा देवी है। इसी मूर्ति के पास श्री राम और लक्ष्मण जी की मूर्तियां स्थित हैं। मंदिर के पुजारी ने बताया कि हर साल बरसात के समय गंगा जी का जल घाटों को पार करते हुए इस मंदिर तक आता है और हनुमान जी के चरणों का स्पर्श करने के बाद आगे नहीं बढ़ता बल्कि वहीं से वापस लौटने लगता है।