1. केदारनाथ: उत्तराखंड
2. कालेश्वरम: तेलंगाना
3. एकंबरेश्वर: तमिलनाडु
4. चिदंबरम: तमिलनाडु
5. रामेश्वरम: तमिलनाडु
खास बात ये भी है कि ये सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में-लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे हम आम भाषा में पंचभूत कहते है। ये पंच भूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष हैं। इन्ही पांच तत्वों के आधार पर इन पांच शिवलिंगों को प्रतिस्थापित किया गया है।
इनमें जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है, जबकि आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है, वहीं हवा का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, इसके अलावा पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम में है और आखिरी पांचवां यानि अंतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है। वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पांच मंदिर।
भौगोलिक रूप से भी इन मंदिरों में जो विशेषता पायी जाती वह ये है कि इन पांचों मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था, और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। जानकारों के अनुसार इस के पीछे निश्चित ही कोई विज्ञान होगा, जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव डालता होगा।
इन मंदिरों का करीब चार हज़ार वर्ष पूर्व निर्माण किया गया था, जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए उस समय कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध ही नहीं थी। तो फिर आखिर कैसे इतने सटीक रूप से पांच मंदिरों को प्रतिस्थापित किया गया था?
केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किमी की दूरी है। लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पड़ते है। आखिर हज़ारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयॊग कर इन मंदिरों को समानांतर रेखा में बनाया गया है यह आज तक रहस्य ही है। श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु-लिंग है। तिरूवनिक्का मंदिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल-लिंग है। अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि वह अग्नि-लिंग है। कंचिपुरम के रेत के स्वयंभू-लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी-लिंग है और चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान के निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है।
ऐसे में ये आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है? कि ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करनेवाले पांच—लिंगो को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिस्थापित किया गया है। हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और बुद्दिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसा विज्ञान और तकनीक था जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है। इस रेखा को “शिव शक्ति अक्ष रेखा” भी कहा जाता है। संभवता यह सारे मंदिर कैलाश को ध्यान में रखते हुए बनाया गया हो जो 81.3119° E में पड़ता है।