-थोड़ा हटकर करने की कोशिश
इस बार गणपति महोत्सव के लिए शामियाने के व्यापारियों ने थोड़ा हटकर व्यापारिक प्रयोग करने की कोशिश की है और उसमें वे पूरी तरह से सफल भी रहे हैं। इस प्रयोग में व्यापारियों ने एम्ब्रोयडरी वाले शामियाने को अलग-अलग पंडाल की साइज में डेकोरेट कर तैयार किए हैं। इसमें 4 बाय 4, 5 बाय 5, 6 बाय 6 की साइज के पंडाल के लिए डेकोरेट शामियाने अधिक रहे हैं। इस संबंध में व्यापारियों ने बताया कि ज्यादातर गली-मोहल्ले व सोसायटी-अपार्टमेंट में इन्हीं साइज के गणपति पंडाल बनाए जाते हैं और पहले वहां अलग-अलग तरह के पर्दों से सजावट की जाती थी। इस बार पंडाल की इन साइज में डेकोरेट शामियाने तैयार किए गए और वे बड़ी मात्रा में बेचे गए हैं।
-बीते दो साल में 700 करोड़ के नुकसान का आकलन
कोरोना काल के दो साल के दौरान शामियाना के व्यापारियों को 700 करोड़ के नुकसान का आकलन किया गया था। बताया है कि शामियाने का कपड़ा उत्पादन कोरोना से पहले प्रतिदिन 10 लाख मीटर तक होता था जो कि 2020 व 2021 में कोरोना काल के दौरान यह घटकर केवल डेढ़ लाख मीटर तक सिमट गया था। शामियाना कारोबार के जानकारों की मानें तो 2020 में मार्च के बाद से ही शादी समारोह बंद हो गए थे और तब 400 करोड़ के व्यापारिक नुकसान का आकलन किया गया था और इसके अगले वर्ष 2021 में व्यापारिक नुकसान का आकलन 300 करोड़ तक का किया गया था। बीते इन दो वर्षों में शामियाने के कारोबार में 700 करोड़ के नुकसान का आकलन है।
-इस बार शुभ शुरुआत के साथ आगमन
गणपति महोत्सव का इस वर्ष आगमन सूरत कपड़ा मंडी के शामियाना व्यापारियों के लिए शुभ शुरुआत के साथ हुआ है। अकेले महाराष्ट्र में ही ढाई सौ करोड़ के कारोबार होने का अनुमान है और यह आगे भी जारी रहने की पूरी संभावना है।
देव संचेती, प्रमुख, सूरत मंडप क्लॉथ एसोसिएशन
गणपति महोत्सव का आगमन सूरत कपड़ा मंडी के शामियाना व्यापारियों के लिए शुभ-लाभ के साथ हो रहा है। इस बार अलग-अलग साइज के गणपति पंडाल के लिए तैयार शामियाने 1200 से 1500 रुपए में बड़े पैमाने पर बेचे गए। अकेले महाराष्ट्र में ही गणपति महोत्सव के लिए ढाई सौ करोड़ का शामियाने का कपड़ा बेचा गया है। इसमें एम्ब्रोयडरी युक्त लाइक्रा कपड़ा 100 रुपए मीटर तक बिका है जबकि सामान्य लाइक्रा 30 रुपए मीटर के भाव से बड़े पैमाने पर बेचा गया। गणपति महोत्सव के लिए सूरत कपड़ा मंडी से बेचा गया शामियाने का कपड़ा महाराष्ट्र की मुंबई व पुणे कपड़ा मंडी में ही ज्यादा बिका है। बाद में वहां से सभी शहर व गांव-कस्बों में यह पहुंचाया गया।