17वीं सदी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब पहला कदम सूरत में रखा था तो उसका मकसद काली मिर्च का व्यापार था। हालांकि सूरत उस वक्त ८४ देशों के साथ व्यापार करता था, लेकिन यह कारोबार मसालों को लेकर था। कपड़े के कारोबार को लेकर इतिहास मौन है। जानकारों के मुताबिक शहर में उस वक्त भी कपड़े का कारोबार होता होगा, लेकिन सूरत की पहचान कपड़ा उद्योग से नहीं थी। चैम्बर की जीएफआरआरसी ने सूरतीयों ही नहीं शहर में आने वाले लोगों को भी सूरत के कपड़ा कनेक्शन से परिचित कराने का बीड़ा हाथ में लिया है।
जीएसआरआरसी में टैक्सटाइल गैलरी का खाका तैयार करने के लिए एक पैनल गठित किया जाएगा। पैनल के सदस्य पुराने और जानकार लोगों से मिलकर शहर में कपड़ा उद्योग का इतिहास खंगालेंगे। इतिहास को लिपिबद्ध करने के साथ ही पुराने फोटोग्राफ, वीडियो सेक्शन और पुरानी बची रह गई मशीनों को भी गैलरी में रखने की योजना है। इसका मकसद लोगों को यह बताना भी है कि पुरानी मशीनों पर किस तरह कपड़ा और जरी तैयार होता था।
जरी था सूरत की पहचान कपड़े से पहले सूरत की पहचान जरी उद्योग से थी। घर-घर मशीनें थीं और लोग हाथ से मशीन चलाकर जरी के बॉर्डर बनाया करते थे। इस काम में महिलाओं की भागीदारी ज्यादा थी। उस वक्त सोने और चांदी के तार से जरी तैयार होती थी, जिसकी दूसरे देशों में बड़ी मांग थी। बाद में जरी उद्योग धीरे-धीरे सिमटता गया और टैक्सटाइल उद्योग शहर की नई पहचान के रूप में विकसित हुआ।
कपड़ों का सूरत कनेक्शन एक सदी पुराना शहर का कपड़ा कनेक्शन करीब एक सदी पुराना है। जानकारों के मुताबिक वर्ष 1940 में कुछ ही घरों में हैंडलूम थे और कपड़ा बुना जाता होगा। यह कपड़ा लोगों की जरूरत पूरी नहीं करता था। धीरे-धीरे हैंडलूम्स की संख्या बढ़ी और फिर निरंतर विकास के क्रम में सूरत में आधुनिक मशीनों से कपड़ा बुना जाने लगा।
अब देश का मैनचेस्टर जब सूरत में चंद हैंडलूम पर कपड़ा उत्पादन हो रहा था, उत्तरप्रदेश के मऊ की देश के कपड़ा उद्योग में तूती बोलती थी। यही वजह है कि पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने मऊ को भारत का मैनचेस्टर कहा था। मऊ से कपड़ा उद्योग सिमटा तो कालांतर में अहमदाबाद को देश का मैनचेस्टर कहा जाने लगा। अहमदाबाद का कपड़ा उद्योग भी धीरे-धीरे खत्म हो गया और सूरत ने इस जगह को भरा। फिलहाल सूरत को देश का मैनचेस्टर कहा जाता है। यह बताता है कि मैनचेस्टर दुनिया में कपड़ा उद्योग का एपिक सेंटर रहा है।
बहुत बदला ट्रेंड शहर में उस दौर के कपड़ा उद्यमी 95 वर्षीय रतिलाल एन काजीवाला ने सूरत में कपड़ा उद्योग में आए बदलाव को नजदीक से देखा है। वह बताते हैं कि शुरू में शहर की पहचान जरी उद्योग से थी। शुरू में कहीं-कहीं हैंडलूम थी, जिनकी संध्या बाद में धीरे-धीरे बढ़ी। आज सूरत कपड़ा उद्योग में देश-दुनिया में पहचान बना चुका है।
मिलेगी जानकारी हम जीएफआरआरसी के माध्यम से टैक्सटाइल गैलरी तैयार करने जा रहे हैं। इसके माध्यम से लोगों के सूरत में कपड़ा उद्योग के इतिहास की जानकारी मिलेगी। इसके लिए हम जानकारियां जुटा रहे हैं।
गिरधर गोपाल मूंदड़ा, प्रमुख, जीएफआरआरसी, सूरत