सत्ता शिखर तक पहुंचने के लिए भाजपा ने जो सामाजिक ताना-बाना बुना, उसने गुजरात ही नहीं उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों में भी भाजपा को खासी कामयाबी दिलाई है। गुजरात सरकार में हुए हालिया नेतृत्व परिवर्तन में भी इसकी झलक साफ दिखी है। भाजपा के इसी फार्मूले पर अमल कर कांग्रेस भी सत्ता की सीढ़ी चढऩे का सपना संजो रही है। राजनीति के जानकार जिग्नेश मेवाडी को कांग्रेस से जोडऩे के घटनाक्रम को इसी कड़ी का हिस्सा मान रहे हैं। हालांकि जिग्नेश के बहाने कांग्रेस गुजरात के करीब आठ फीसदी मतदाताओं पर कितना असर छोड़ पाती है, यह विधानसभा 2022 के परिणाम ही बेहतर बता पाएंगे, लेकिन इससे पहले पटेलों को साधने का कांग्रेस का प्रयोग पूरी तरह विफल रहा है। विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में हार्दिक के चेहरे के बावजूद पटेल फैक्टर कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा साबित नहीं हुआ है।
आसान नहीं सत्तर-तीस के फर्क को बदलना मतदाताओं के आंकड़े ही जीत का गणित है तो कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव की राह कतई आसान नहीं है। प्रदेश में मतदताओं के आंकड़े पर गौर करें तो सबसे ज्यादा मतदाता पिछड़े वर्ग से आते हैं, जहां भाजपा की अच्छी पैठ है। इसके अलावा करीब 20 फीसदी आदिवासी, दस फीसदी ब्राह्मण, जैन, क्षत्रिय और अन्य सवर्ण मतदाता हैं। आदिवासी मतदाता पहले कभी कांग्रेस खेमे में थे, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। बहुसंख्य आदिवासी अब भाजपा में अपना भविष्य देख रहे हैं। इसके अलावा 16 फीसदी पाटीदार, 12 फीसदी मुस्लिम और आठ फीसदी दलित मतदाता हैं। मुस्लिमों के अलावा एकमुश्त कांग्रेस के थोक मतदाता किसी और जातीय समीकरण में फिट नहीं बैठते।
कांग्रेस के वोटबैंक में आप की सेंधमारी सूरत मनपा निकाय चुनाव में आप ने अपना दमखम दिखा दिया था। उसने कांग्रेस के वोटबैंक में सेंधमारी कर कांग्रेस को मनपा बोर्ड से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। विधानसभा चुनावों में भी आप का फोकस कांग्रेस को विधानसभा से बेदखल कर विपक्ष पर काबिज होना है। कांग्रेस के वोटबैंक पर सेंधमारी कर आम आदमी पार्टी प्रदेश में सत्ता में फिर लौटने की कांग्रेस की आस पर पानी फेर देगी।
दलितों में भी भाजपा का असर बड़ा बीते कई चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें तो प्रदेश के दलित मतदाताओं में भी भाजपा का असर बड़ा है। सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच दलित मतदाता करीब 65-35 फीसदी के फर्क के साथ बंटे हुए हैं। ऐसे में जिग्नेश पर दारोमदार रहेगा कि भाजपा के पाले से कितने दलितों को कांग्रेस के पाले में ला सकते हैं। खास बात यह है कि जिग्नेश के असर वाले क्षेत्र में दलितों में कांग्रेस पहले से मजबूत है। जानकार मानते हैं कि ऐसे में कांग्रेस के लिए जिग्नेश का आना बड़ा गेमचेंजर साबित होने वाला नहीं है।