उपेक्षा के चलते दम तोड़ रहा सुलतानपुर का प्रसिद्ध बाध उद्योग, सरकारी संरक्षण के अभाव में सिमट रहा यह कुटीर उद्योग
संघर्ष कर रहे हैं बचे कारोबारीपीतल के बर्तनों के मुख्य कारोबारी श्रीप्रकाश कहते हैं कि अब पीतल के बर्तनों का चार्म नहीं रहा। बदलते दौर और पसन्द के आगे पीतल के बर्तनों का कारोबार लगभग बन्द सा हो गया है और इसके कारीगर बेरोजगारी से जूझ कर अन्य प्रदेशों को पलायन कर रहे हैं। क्योंकि उनका परिवार भुखमरी का दंश झेल रहा है। अब हम पीतल के बर्तनों का कारोबारी समय की नजाकत भांपकर स्टील के बर्तनों का कारोबार कर रहे हैं।
श्रीप्रकाश और राजकुमार कहते हैं कि सिर्फ कारोबारी ही नहीं, बल्कि हजारों लोगों इस रोजगार से जुड़े थे। औद्योगिक क्षेत्रों की तरह सुबह शाम यहां मजदूर ही मजदूर दिखाई देते थे। दुकान, खोमचे व चाय की गुमटी चलाने वाले भी हजारों कमाते थे। कूड़ा-कबाड़ बीनने वालों की भी अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी, लेकिन अब वर्तमान समय में यह सब इतिहास बन कर रह गया है।
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देखें वीडियो… वैज्ञानिक दृष्टि से तांबे व पीतल के बर्तनों का इस्तेमाल है सेहतमंदवैज्ञानिक दृष्टि से तांबे, पीतल व कांसे के बर्तनों में खाना-पीना सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। प्राचीन काल में राजाओं-महाराजाओं के यहां सोने-चांदी के अलावा इन्हीं बर्तनों की भरमार हुआ करती थी, लेकिन अब यह बर्तन रसोई घरों से गायब हो गए हैं।