श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के चलते मां काली जी के ऐतिहासिक मंदिर स्थल मेले के रूप में तब्दील हो गया है। शक्ति स्वरूपा मां काली जी के प्रति श्रद्धालुओं की अपार श्रद्धा देखते ही बनती है । यहां शारदीय नवरात्र में मुंडन संस्कार सहित कथा पुराण के नियमित आयोजन होते हैं । मनौती पूरी होने पर लोग श्रद्धा भाव से चढ़ावा चाहते हैं । श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण नवरात्र में मेले जैसा दृश्य सुबह से लेकर देर रात तक बना रहता है । मंदिर प्रांगण में माला फूल अगरबत्ती चुनरी नारियल की दुकानों अलावा चाट पकौड़ी खिलौने की अस्थाई दुकानें सज जाती है। दुकानदारों को पूरे वर्ष शारदीय नवरात्र का इंतजार बेसब्री से रहता है।
मंदिर के बारे में बताया जाता है कि पूर्व में काशी महाराजा उदित नारायण सिंह के शासन काल के समय 1793 में महाराजा को एक स्वप्न आया की मां काली दक्षिणेश्वर की मूर्ति गंगा के बीच धारा में पड़ा हुआ है। महाराजा ने उसको निकलवा कर चकिया में विशाल मंदिर बनवा कर माता रानी की स्थापना करवाया गया । दाहिने तरफ में माता महालक्ष्मी बाए तरफ में मां सरस्वती को विराजमान किया गया। सामने गणेश जी की मूर्ति की स्थापना की गई । बीचोबीच गर्भ ग्रह में अपने तीनों भाइयों के नाम पर उदिततेश्वर, प्रसिद्वेश्र्वर,दीपेश्वर, 3 शिवलिंग की स्थापना की गई । मंदिर के गर्भ गृह में सुतली विभिन्न रंगों का प्रयोग से महिषासुर सहित तमाम सजीव का चित्रण किया गया । अष्टधातु निर्मित महा घंटा स्थापित किया गया । माना जाता है कि इस घंट की ध्वनि जहां तक सुनाई देगी वहां तक सारी विध्न बाधाएं दूर हो जाती है।
मंदिर के पुजारी वीरेंद्र कुमार झा बताते हैं कि महाराजा काशी उदित नारायण सिंह ने इस मंदिर को बनवाए हैं । मां काली जो है आदिशक्ति साधारण काली नहीं आदिशक्ति पारंबा जितना भी इनके बारे में कहा जाये कम है । गर्भ गृह में जो महादेव बने हुए हैं महाराजा लोगों के नाम से है उदितेस्वर महादेव, प्रसिद्धेश्वर महादेव, दीपेश्वर महादेव, तीनों महादेव का नाम है । यहां इसमें पांचो देवता है महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती और गणेश । हमारा तो इस बात का चैलेंज है जो व्यक्ति आस्था और विश्वास लेकर के इनकी दरबार में आया है । सवाल ही नहीं है कि उसकी मनोकामना पूर्ण न हो वैसे ही भीड़ यहां नहीं लगती । इनके अंदर शक्ति है तभी तो भीड़ लगती है ।कितना आदमी यहां आते हैं। मनोकामना लेकर मनोकामना पूर्ण भी होता है । मनोकामना पूर्ण होने के बाद भी पूजा पाठ करते हैं ।बाल बच्चों के रक्षा के लिए इसके पहले बली होता था लेकिन इधर बीच दो 3 सालों से बंद है ।
माँ काली के मंदिर में दर्शन करने आये दर्शनार्थी डॉक्टर महेश कुमार राय ने बताया की मंदिर सन 1793 में उदित नारायण सिंह में स्थापित किया है।
ऐसा माना जाता है कि उस समय महाराजा के स्वप्न में ऐसा प्रतीत होता है कि उनके सपने में देवी आई देवी गंगा की धारा में पड़ी हुई थी। उसको निकालकर से यहां पर स्थापित किया गया है। 1793 में स्थापना की शुरुआत होती है लगभग 5 वर्षों में पूरी तरीके से निर्मित हो जाती है ।दाहिने तरफ महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित की गई है । बाएं तरफ महा सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की गई है और गर्भ गृह के बीच में जो है महाराजा ने अपने तीन भाइयों के नाम से दिपेश्वर,उदिततेश्वर, प्रसिद्धेस्वर के नाम से शिवलिंग स्थापित किया है । उस समय जो है सुतली का प्रयोग किया जाता था। उसके द्वारा महिषासुर और काली बीच में युद्ध को दर्शाया गया है चित्र के द्वारा । बाहर जो नंदी है स्थापित किया गया है। बीच में अष्टधातु से निर्मित घण्टा है ।
जिसपे दुर्गा के समस्त श्लोकों का वर्णन है उस लिखा गया है बकायदे ऐसा माना जाता है कि उसकी ध्वनि जहा तक जाती है वहां तक सुख शांति रहती है । बहुत बड़े आस्था का केंद्र है ।