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प्रगतिशील किसान हंसराज पूनिया ने बताया कि इन बगीचों में टीशू कल्चर की चार किस्मों खुनेजी, खलास, बरही तथा मेडजूल की अनेक किस्में लगी हुई है। इन किस्मों के खजूर के पौधें तीन वर्ष में फल देने शुरू कर देते हैं। दस वर्ष का पौधें सौं क्विंटल तक फल देता हैं। खुनैजी व खिलास किस्म के पौधों से गए खजूरों से खारक बनती हैं। जबकि मेडजूल किस्म के लगे खजूर से उच्च कोटि का अचार बनता हैं। आज टिब्बा क्षेत्र के इस अभाव ग्रस्त इलाके में खजूर की खेती से किसानों को लाखों रुपए की आमदनी हो रही हैं और अनेक किसानों को रोजगार मिल रहा हैं। साथ ही मरूक्षेत्र खजूरों की मिठास के लिए सरोबार हो गया है। यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। दूसरी ओर इन खजूरों के बाग लगने से वर्षा करवाने में सहायक सिद्ध हो रहें हैं। खजूर की खेती ड्रिप सिस्टम से होती हैं। मीठा पानी नहीं होने के बावजूद किसान लाखों की कमाई कर रहे हैं।
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प्रगतिशील किसान बद्री नारायण शर्मा, गौरीशंकर शर्मा, रतीराम शर्मा, संतलाल शर्मा, कृष्ण पूनिया मनीराम पूनिया, हंसराज पूनिया, बलवान सारण सहित बारह किसानों के बाग लगे हैं।यहां के खजूरों की महक पंजाब हरियाणा और दिल्ली के अनेक शहरों में जाती हैं और किसानों का मेला लगता हैं। यहां जुलाई अगस्त में मेला भरता हैं। वर्तमान में बद्रीनारायण शर्मा स्थानीय तथा बाहर के क्षेत्र के किसानों के प्रेरणा स्रोत बन गये हैं।किसान बद्री नारायण शर्मा किसानों को नि:शुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं तथा खजूर का बाग लगाने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं। पंजाब हरियाणा, गुजरात, दिल्ली, नोएडा, आगरा, मथुरा व राजस्थान के जयपुर, नागौर जालौर जैसलमेर किसान मेले में भाग लेने आते हैं। तथा खजूरों के बागों का बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारी तथा बागवानी से जुड़े हुए अनेक अधिकारी भी भ्रमण कर चुके हैं। इसी तरह धीरे-धीरे करके अन्य लोग भी खजूर की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं और अपने जमीन पर छोटे-मोटे खजूर के बाग लगाकर लग रहे हैं।