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श्री गंगानगर

किसानों की मेहनत रंग लाई, टिब्बा क्षेत्र के गांव बने खजूर खेती के हब

राजियासर. उपतहसील के बड़े-बड़े रेतीलों टिब्बों से घिरे देईदासपुरा व कौनपालसर गांव खजूर के खेती के हब बन गए हैं। इस क्षेत्र में टयूबवेल से सिंचित बारानी भूमि में अब तक एक सौं पचास बीघा भूमि में बारह खजूर के बाग लग चुके हैं। जिससे आने वाले समय में हजारों टन में खजूर का उत्पादन हो सकेगा। वर्तमान में इन खजूर के बागों में सौं टन के करीब खजूर का उत्पादन हो रहा है।

श्री गंगानगरJan 15, 2025 / 11:29 am

Jitender ojha

राजियासर. उपतहसील के बड़े-बड़े रेतीलों टिब्बों से घिरे देईदासपुरा व कौनपालसर गांव खजूर के खेती के हब बन गए हैं। इस क्षेत्र में टयूबवेल से सिंचित बारानी भूमि में अब तक एक सौं पचास बीघा भूमि में बारह खजूर के बाग लग चुके हैं। जिससे आने वाले समय में हजारों टन में खजूर का उत्पादन हो सकेगा। वर्तमान में इन खजूर के बागों में सौं टन के करीब खजूर का उत्पादन हो रहा है।
टिब्बा क्षेत्र की विषमभौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए यह बहुत ही चुनौती भरा कार्य था। जबकि इस इलाके में ग्रामीण लोग वर्षों अकाल की मार झेलते रहे हैं तथा किसानों की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो जाती हैं। बारिश नहीं होने पर अकाल के दिनों में अधिकतर लोगों का गांव से पलायन हो जाता था। लेकिन क्षेत्र के प्रगतिशील किसानों ने इस क्षेत्र में बारानी भूमि में टयूबवेल से ड्रिप सिस्टम लगाकर खारे पानी से डेढ़ सौ बीघा खजूर की खेती करके नया चमत्कार किया हैं। जहां रेत उड़ती थी वहां अब खजूर के खेत हैं।अब इस क्षेत्र में खजूर के बारह बाग लहरा रहे हैं। इनके इन खजूर के बागों से किसानों को हर साल करोड़ों रुपयों का कारोबार होना शुरू हो गया हैं तथा आने वाले समय में हजारों टन खजूर का उत्पादन होगा। टिब्बा क्षेत्र के लाखों लोगों को रोजगार मिलने लगेगा। खजूर की खेती किसानों के लिए वरदान साबित हो रही हैं।
प्रगतिशील किसान देईदासपुरा निवासी बद्रीनारायण शर्मा ने अपनी मेहनत के बल पर टिब्बा क्षेत्र में चमत्कार किया हैं। उन्होंने बताया कि जैसलमेर क्षेत्र में खजूर की खेती देखकर उन्होंने भी इस बारानी टिब्बा क्षेत्र में टयूबवेल खोदकर ड्रिप सिस्टम से वर्ष 2009 में 28 बीघा भूमि पर खजूर का बाग लगाया। प्रगतिशील किसान की मेहनत रंग लाई और आज यह बुजुर्ग किसान अपने खजूर के बाग से लाखों रुपए की आमदनी ले रहे हैं। वर्तमान में प्रगतिशील किसान बद्रीनारायण शर्मा व प्रगतिशील किसान हंसराज पूनियां स्थानीय तथा बाहर के क्षेत्र के किसानों के प्रेरणा स्रोत बन गये हैं।
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चार खजूर के किस्मों की खेती

प्रगतिशील किसान हंसराज पूनिया ने बताया कि इन बगीचों में टीशू कल्चर की चार किस्मों खुनेजी, खलास, बरही तथा मेडजूल की अनेक किस्में लगी हुई है। इन किस्मों के खजूर के पौधें तीन वर्ष में फल देने शुरू कर देते हैं। दस वर्ष का पौधें सौं क्विंटल तक फल देता हैं। खुनैजी व खिलास किस्म के पौधों से गए खजूरों से खारक बनती हैं। जबकि मेडजूल किस्म के लगे खजूर से उच्च कोटि का अचार बनता हैं। आज टिब्बा क्षेत्र के इस अभाव ग्रस्त इलाके में खजूर की खेती से किसानों को लाखों रुपए की आमदनी हो रही हैं और अनेक किसानों को रोजगार मिल रहा हैं। साथ ही मरूक्षेत्र खजूरों की मिठास के लिए सरोबार हो गया है। यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। दूसरी ओर इन खजूरों के बाग लगने से वर्षा करवाने में सहायक सिद्ध हो रहें हैं। खजूर की खेती ड्रिप सिस्टम से होती हैं। मीठा पानी नहीं होने के बावजूद किसान लाखों की कमाई कर रहे हैं।
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लगता हैं मेला,बाहर भेजा जाता हैं खजूर

प्रगतिशील किसान बद्री नारायण शर्मा, गौरीशंकर शर्मा, रतीराम शर्मा, संतलाल शर्मा, कृष्ण पूनिया मनीराम पूनिया, हंसराज पूनिया, बलवान सारण सहित बारह किसानों के बाग लगे हैं।यहां के खजूरों की महक पंजाब हरियाणा और दिल्ली के अनेक शहरों में जाती हैं और किसानों का मेला लगता हैं। यहां जुलाई अगस्त में मेला भरता हैं। वर्तमान में बद्रीनारायण शर्मा स्थानीय तथा बाहर के क्षेत्र के किसानों के प्रेरणा स्रोत बन गये हैं।किसान बद्री नारायण शर्मा किसानों को नि:शुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं तथा खजूर का बाग लगाने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं। पंजाब हरियाणा, गुजरात, दिल्ली, नोएडा, आगरा, मथुरा व राजस्थान के जयपुर, नागौर जालौर जैसलमेर किसान मेले में भाग लेने आते हैं। तथा खजूरों के बागों का बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारी तथा बागवानी से जुड़े हुए अनेक अधिकारी भी भ्रमण कर चुके हैं। इसी तरह धीरे-धीरे करके अन्य लोग भी खजूर की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं और अपने जमीन पर छोटे-मोटे खजूर के बाग लगाकर लग रहे हैं।

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