मनजीत कौर के पति सुखदेव सिंह खोसा बहुत समय पहले इस दुनिया को अलविदा कह गए। यहीं से उसके जीवन का संघर्ष शुरू हुआ। अपने बेटे गुरविंद्र सिंह को पाला-संभाला। सब ठीक हुआ ही था कि तीन साल पहले उसका बेटा गुरविंद्र सिंह और पुत्रवधु रमनदीप कौर चल बसे। वे अपने पीछे नौ वर्षीय पुत्र एकाग्रमन सिंह को छोड़ गए। इसके बाद शुरू हुआ मनजीत के धाकड़ दादी बनने का सफर। मनजीत कौर अपने पोते में बेटे की छवि देखती है। अस्सी की उम्र में मनजीत कौर रोजमर्रा के काम के लिए ना केवल जीप चलाकर बाजार आती है बल्कि चार मुरबा जमीन पर खेती भी खुद ही संभाल रही है। परिवार सहित सारा हिसाब-किताब वे ही देखती हैं। अपने 12 वर्षीय पोते के भविष्य के लिए उसने अपनी दिनचर्या ही बदल ली है। उसकी देखभाल और पढ़ाई की जिमेदारी के चलते आराम की जगह काम को तरजीह दे रखी है। पोता कस्बे के एक निजी स्कूल में पढ़ता है। वे उसे अपने मां-बाप की कभी कमी नहीं खलने नहीं देती।
हर कोई करता है तारीफ
ग्रामीणों का कहना है कि दादी मनजीत कौर की अब रोज की यही दिनचर्या है। घर में बैठकर आराम करने की उम्र में इस बुजुर्ग महिला को जब लोग बाजार में इलेक्ट्रिक जीप ड्राइव करते देखते हैं तो हैरान जरूर होते हैं। हकीकत का पता चलता है तो इनके हौसले देखकर हर कोई तारीफ करता है।
दादी मां बोली—अब यही मेरा बेटा
मनजीत कौर ने बताया कि वे अब अपने पोते के लिए बाकी का जीवन बिता रही है। अब मेरा पोता ही मेरा बेटा है। उसे मां और पिता की कभी कमी नहीं खले इसलिए मैं वह सब कुछ करती हूं जो इसके माता-पिता इसके लिए करते। पोता पढ़-लिखकर अपने पांव पर खड़ा हो जाए, इसलिए मैं हर वो काम करती हूं, जो शायद मेरे लिए नहीं बने। पोते में बेटे का अक्स दिखता है, इसलिए कुछ भी करते हुए दर्द या थकावट महसूस नहीं होती।