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श्री गंगानगर

अनूपगढ़ : ‘यह समय घरों और दुकानों में बैठने का नहीं, अपने अधिकार और सम्मान के लिए खड़े होने का है’

जनता का टूटा विश्वास: जिला के पुनः अस्तित्व पाने की लड़ाई के तहत बेमियादी बाजार बंद की घोषणा, संघर्ष समिति ने डाला पड़ाव

श्री गंगानगरDec 30, 2024 / 09:08 pm

Ajay bhahdur

यह घरों और दुकानों में बैठने का नहीं, यह समय है अपने अधिकार और सम्मान के लिए खड़े होने का

अनूपगढ़ .सभा करते लोग।

अनूपगढ़. राजस्थान में एक तरफ जहां कांग्रेस ने नए जिलों के गठन किया, फिर भाजपा सरकार ने आने के एक साल में ही नए 17 जिलों में से 9 जिलों का अस्तित्व समाप्त कर दिया। भजन लाल सरकार के इस फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सवालों के साथ जनता का आक्रोश अब सड़कों पर उतर आया है। सरकार की तरफ से खत्म किए अनूपगढ़ जिले के अस्तित्व को पुनः पाने के लिए जिला बनाओ संघर्ष समिति के बैनर तले अनूपगढ़ जिला बनाओ धरना स्थल पर सोमवारको सभा का आयोजन किया। इस अवसर पर वक्ताओं ने अपने संबोधन में भाजपा सरकार को कोसा।
इस मौके पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भजनलाल कामरा, अनूपगढ़ विधायक शिमला नायक, कांग्रेस नेता हरिराम मेघवाल, माकपा नेता सुनील गोदारा, सत्य प्रकाश सियाग, श्रीविजयनगर नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष सुशील मिढा, पार्षद राजू चलाना, सुखविंदर सिंह मक्कड़, युवा कांग्रेस नेता साहिल कामरा आदि ने विचार व्यक्त किए। सर्व सम्मति से निर्णय लिया गया कि इस लड़ाई को जीतने के लिए बेमियादी समय के लिए बाजार बंद किए जाएंगे तथा धरना स्थल पर पड़ाव जारी रहेगा। इसके बाद अनूपगढ़ को जिला पुनः घोषित करने के लिए एडीएम को ज्ञापन सौंपा गया।

एकजुटता का आह्वान

अनूपगढ़ जिला बचाओ संघर्ष समिति की तरफ से पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार सोमवार को दोपहर लगभग 12 बजे लोग एकत्रित होना शुरू हो गए। सभा का संचालन शोभा सिंह ढिल्लो ने किया। सभी वक्ताओं ने 2004 का आंदोलन याद करवाते हुए कहा कि यह अनूपगढ़ घड़साना रावला का वो इलाका है जिसने पूर्व में भी भाजपा सरकार को झुकाया था। वक्ताओं ने कहा कि हम गांधीवादी तरीके से भी अपना हक लेना जानते हैं और उग्र आंदोलन भी कर सकते हैं। वक्ताओं ने कहा कि सरकार का जिले निरस्त करने का निर्णय विवेकहीन है, विशेषकर अनूपगढ़ जैसे संघर्षरत क्षेत्र में, जहां 12 साल से संघर्ष करने वाले लोगों के साथ साथ लगभग पूरे जिले के वाशिंदों ने जिला बनने की घोषणा ने लोगों के सपनों को पंख दिए थे, अब वही उम्मीदें ध्वस्त हो रही हैं। जिला बनने के बाद अनूपगढ़ के निवासियों ने इसे विकास का केंद्र मानते हुए निवेश और योजनाएं शुरू की। जमीन, मकान और व्यापार में हुई बढ़ोतरी ने क्षेत्र की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया। लेकिन सरकार के अचानक इस फैसले ने न केवल जनता के आर्थिक हितों को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि उनके विश्वास को भी गहरी चोट दी है। वक्ताओं ने कहा कि यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि अगर नए जिलों का गठन त्रुटिपूर्ण था, तो सरकार ने इन्हें रद्द करने के लिए एक वर्ष का समय क्यों लिया, जिला अस्पताल, महिला थाना, जिला स्तरीय कार्यालय आदि की घोषणा कर लोगों को अंधेरे में क्यों रखा। इनकी घोषणा करने से पहले व्यापक आंकलन क्यों नहीं किया गया? जिस प्रकार डींग से भरतपुर की दूसरी 38 किलोमीटर होने के बावजूद उसके अस्तित्व को यथावत रखा गया, इसके पीछे क्या कारण रहे , विधानसभा चुनाव में मिली भाजपा की हार का बदला लेने और अगर राजनीतिक स्वार्थों और द्वेषता के लिए यह खेल खेला गया, तो इसका खामियाजा आम जनता को क्यों भुगतना पड़े? और क्या इस तरह खेला खेल कर भजन लाल सरकार दोबारा इस सीट को ले पाएगी। वक्ताओं ने कहा कि अनूपगढ़ जिला निरस्त की घोषणा को रद्द करने का निर्णय नहीं किया गया तो आगामी आने वाले हर चुनाव में इस पूरे क्षेत्र की जनता उन्हें जवाब देगी।

बच्चों के भविष्य का सवाल

वक्ताओं ने कहा कि राजनीतिक दलों और सरकार को समझना होगा की ऐसे फैसले केवल कागज पर नहीं होते। यह लोगों के जीवन और भविष्य से जुड़े होते हैं। अनूपगढ़ जैसे सीमावर्ती क्षेत्र, जो दशकों से विकास और मान्यता के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उनके साथ किया गया यह व्यवहार अक्षम्य है। सरकार से अपेक्षा है कि वह जनता के विश्वास को समझे और इस निर्णय पर पुनर्विचार करे। वहीं, क्षेत्र की जनता को भी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करनी होगी। यह समय है अपने अधिकारों और सम्मान के लिए खड़े होने का। उन्होंने कहा कि बाजार बंद करने के बाद लोग धरना स्थल पर आए और सरकार को अपनी उपस्थिति का अहसास करवाए।

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