43 लावारिस लाशों के वारिस बने सूरत के युवा
सूरत के एकता ट्रस्ट के युवाओं ने सड़ते शवों के अंतिम संस्कार का बीड़ा उठाया और शवों को अग्नि दी
दिव्येश सोंदरवा / बिनोद पांडेय / मुकेश त्रिवेदी
सूरत। अहमदाबाद में प्रशासन की बेपरवाही और असंवेदनशीलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 140 लावारिस शव सड़ते रहे और किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। शवों के अंग-अंग अलग हो रहे थे जबकि प्रशासन और कांट्रेक्टर में अंतिम संस्कार की राशि के लिए नूराकुश्ती चल रही थी। ऎसे समय में सूरत के एकता ट्रस्ट के युवाओं ने सड़ते शवों के अंतिम संस्कार का बीड़ा उठाया और शवों को अग्नि दी।
संवेदनशीलता तब और तार-तार हो गई जब गुजरात प्रशासन व अस्पताल ने थोड़ा भी सहयोग नहीं किया। अहमदाबाद के न्यू सिविल अस्पताल में कांट्रेक्टर और प्रशासन में लावारिस लाशों की अंतिम संस्कार राशि एक हजार रूपए करने पर ठनी थी। यहां डेढ़ महीने में करीब 140 शव जमा हो गए। यह जानकारी किसी तरह सूरत के एकता ट्रस्ट के कार्यकर्ताओं को लगी। ट्रस्ट के लोग अहमदाबाद के सिविल अस्पताल प्रशासन से सम्पर्क कर अंतिम संस्कार की मंजूरी लेने में जुट गए। असंवेदनशील प्रशासन ने तत्काल खुशी-खुशी मंजूरी दे दी।
अहमदाबाद में कठिन था
काम
एकता ट्रस्ट के अध्यक्ष अब्दुल रहमान ने बताया कि प्रशासन से शव का कब्जा लेने के बाद सर्वप्रथम अहमदाबाद मे ही अंतिम संस्कार की कोशिश की गई, लेकिन एक साथ इतने शवों की अंतिम क्रिया करने से मना कर दिया गया। जबकि सूरत मे अश्विनी कुमार श्मशान घाट के संचालक नारायण ट्रस्ट के पदाधिकारी बिना शुल्क शवों को सद्गति देने के लिए तैयार हो गए।
अहमदाबाद में कुछ जैन एवं पटेल समाज के लोगों ने शवों के लिए कफन आदि की व्यवस्था कराई। दो वाहनों मे शव लेकर भूखे-प्यासे कार्यकर्ता अहमदाबाद से रवाना हुए। शवों के दुर्गध की वजह से होटलवाले उन्हें खाने-पीने की चीजें देन से मना कर देते। कई कार्यकर्ताओं को दुर्गध से रारूतेभर उल्टी होती रही। शवों की अंतिम क्रिया कर कार्यकर्ताओं ने रविवार दोपहर करीब दो बजे अन्न ग्रहण किया।
अंग गिरते रहे, कार्यकर्ता उठाते रहे
एकता ट्रस्ट के कार्यकर्ताओं के जज्बे को देखकर श्मशान पर अपने परिजन के अंतिम संस्कार में आए लोग देखकर हैरत में थे। कई बार शवों के अंग नीचे गिर जाते तो ट्रस्ट के सदस्य उसे उठा कर स्ट्रेचर पर रख देते। कार्यकर्ता ग्लब्स पहने हुए थे, लेकिन ट्रस्ट के अध्यक्ष अब्दुल बिना ग्लब्स के ही शवों को उठाते रहे। इससे सबका उत्साह बढ़ता रहा।
भावुक था वह
क्षण
गैस भट्ठी में करीब एक दर्जन से अधिक शवों को रखने के बाद बचे 20 -25 शवों को एक साथ लकड़ी की चिता पर रखा गया। अंतिम क्रिया के वक्त ज्यों ही अग्नि प्रज्जवजित की गई, इन लावारिस लाशों को भी मानों मुक्ति मिल गई हो। श्मशान में खड़े लोग मृतकों की आत्मा की शांति के लिए मन ही मन प्रार्थना करते रहे।
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