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religion : दुनिया का सबसे बड़ा निराला मंदिर

जब एक समाज खड़ा होता है तब कुण्डलपुर धाम गढ़ता हैDamoh MP . कुण्डलपुर महामहोत्सव सदी के सबसे बड़े आयोजनों में से एक अगर बन पड़ा है तो यह एक जागृत समाज के आस्था, संघर्ष, जुनून, जज्बा, श्रम और प्रतिबद्धता का अप्रतिम उदाहरण है। जैन धर्मावलंबियों ने यह दिखाया कि जब एक समाज खड़ा होता है तो कुण्डलपुर जैसा धाम गढ़ देता है।

Feb 25, 2022 / 02:52 am

Rajendra Gaharwar

kundalpur mahamahotsava

कुण्डलपुर: दुनिया का सबसे बड़ा जैन मंदिर

जो देश ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए एक नजीर बनेगा। यहां का दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर और एक पखवाड़े के महामहोत्सव की व्यवस्था ने हर किसी को अचंभित कर दिया। आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ससंघ उपस्थित रहकर जब यह कहते हैं कि दूसरे की परीक्षा लेने से पहले खुद परीक्षा देना पड़ता है। जब इंसान बाहरी भर ही नहीं बल्कि अंतर्मन से भी तैयार हो जाता है कि लो कैसी परीक्षा लेना है। तो आचार्यश्री का दर्शन समाज के लिए ताकत बन जाता है। उस ताकत का लोहा मानने के लिए महामहोत्सव का नजारा पर्याप्त है। सैकड़ों एकड़ में फैले तीर्थ क्षेत्र का विकास और उनमें रहने से लेकर खाने और परिवहन की व्यवस्था के लिए जब महज 10-20 दिन ही बचे हों तो किसी के हांथ-पांव फूल जाना स्वाभाविक है। लेकिन आचार्यश्री की देवदेशना का ही कमाल है जब वे बड़े बाबा की ओर हाथ उठाकर कहते हैं कि हर व्यक्ति उतना ही करे जितना उसके वश में है। उससे ऊपर एक शक्ति तो है ही जो उसे करना है वह करेगी। तभी हजारों लोगों के लिए व्यवस्था हो जाती है। यह केवल वैभव का प्रदर्शन भर नहीं बल्कि समाज के खड़े होकर समाज को जगाने का प्रयास भी है।
एक अनुमान है कि मंदिर के निर्माण पर 600 करोड़ रुपए खर्च होंगे, 400 करोड़ तो अब तक खर्च भी हो चुके हैं। वहीं महामहोत्सव के आयोजन पर 100 करोड़ की रकम खर्च हुई बताई जाती है। व्यवस्था देखकर यह अतिश्योक्ति नहीं लगता। यहीं से एक जागृत समाज का वह चेहरा सामने आता है जो असंभव को संभव कर डालता है। इतिहास गढऩे के लिए सबकुछ दांव पर भी लगाने को तैयार हो जाता है। उसी जज्बे ने कुण्डलपुर के सिद्धक्षेत्र को प्रदेश के अग्रणी धार्मिक क्षेत्र में लाकर खड़ा कर दिया है। यह केवल धर्म का आकर्षण भर नहीं है बल्कि वैराग्य की उस परंपरा के लिए सबकुछ न्यौछावर करने की सोच का परिणाम है जो सदियों से 24 तीर्थंकरों के जरिए उनके सामने आदर्श प्रस्तुत किया जाता रहा है।
तप और वैराग्य की चर्चा
महामहोत्सव में सबसे अधिक चर्चा तप और वैराग्य की ही रही। आचार्यश्री के सैकड़ों शिष्य जहां देश के कोने-कोने से पैदल यात्रा कर कुण्डलपुर धाम पहुंचे। गुरु के सामने जिस तरह से वे दंडवत हुए वह दृश्य हृदय के भीतर तक बस जाने वाला अनुभव दे गया। वहीं हजारों अनुयायी बिना किसी परवाह के देश भर से ही नहीं बल्कि विदेश से भी आकर सदी के सबसे बड़े आयोजन के साक्षी बनें। वैराग्य का मार्ग केवल उनके लिए नहीं है जो हासिए पर हैं बल्कि ऐसे युवाओं को इस राह पर चलने की दीक्षा लेते देखना सुखद है जो ऊंची डिग्री और बड़ी तनख्वाह की नौकरी को त्यागकर तीर्थंकरों के दिखाए आदर्श पर चलकर समाज को नई दिशा देने के लिए ब्रम्हचर्य फिर उससे आगे क्षुल्लक बन गए। वस्त्र त्याग सांसारिक मोह के त्याग का प्रतीक है। तप के राह पर चलने के संकल्प में बेटियां भी पीछे नहीं हैं। आर्यिका माता बनकर पहले ही वे धर्म के दर्शन को आगे बढ़ा रहीं थीं। नौकरीपेशा से लेकर उच्चशिक्षित 176 बेटियां जब आजीवन ब्रम्हचर्य का संकल्प लेती हैं तो सुखद अनुभूति होती है। यह आयोजन कई तरह के सीख और प्रेरणा का पर्याय है। जो जैन धर्म भर ही नहीं बल्कि मानव मात्र के पथ को आलोकित करेगा।

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