महामहोत्सव में सबसे अधिक चर्चा तप और वैराग्य की ही रही। आचार्यश्री के सैकड़ों शिष्य जहां देश के कोने-कोने से पैदल यात्रा कर कुण्डलपुर धाम पहुंचे। गुरु के सामने जिस तरह से वे दंडवत हुए वह दृश्य हृदय के भीतर तक बस जाने वाला अनुभव दे गया। वहीं हजारों अनुयायी बिना किसी परवाह के देश भर से ही नहीं बल्कि विदेश से भी आकर सदी के सबसे बड़े आयोजन के साक्षी बनें। वैराग्य का मार्ग केवल उनके लिए नहीं है जो हासिए पर हैं बल्कि ऐसे युवाओं को इस राह पर चलने की दीक्षा लेते देखना सुखद है जो ऊंची डिग्री और बड़ी तनख्वाह की नौकरी को त्यागकर तीर्थंकरों के दिखाए आदर्श पर चलकर समाज को नई दिशा देने के लिए ब्रम्हचर्य फिर उससे आगे क्षुल्लक बन गए। वस्त्र त्याग सांसारिक मोह के त्याग का प्रतीक है। तप के राह पर चलने के संकल्प में बेटियां भी पीछे नहीं हैं। आर्यिका माता बनकर पहले ही वे धर्म के दर्शन को आगे बढ़ा रहीं थीं। नौकरीपेशा से लेकर उच्चशिक्षित 176 बेटियां जब आजीवन ब्रम्हचर्य का संकल्प लेती हैं तो सुखद अनुभूति होती है। यह आयोजन कई तरह के सीख और प्रेरणा का पर्याय है। जो जैन धर्म भर ही नहीं बल्कि मानव मात्र के पथ को आलोकित करेगा।