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Khatu Mela : 370 साल से खाटूश्यामजी के शिखर पर लहराता है सिर्फ सूरजगढ़ का निशान, सिर पर जोत लेकर महिलाएं पहुंचती है खाटूधाम

सूरजगढ़ वालों का 371 वां निशान बाबा के मंदिर में द्वादशी को सुबह सवा 11 बजे चढ़ाया जाएगा।

सीकरMar 20, 2019 / 12:27 pm

Vinod Chauhan

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खाटूश्यामजी.

Khatushyamji के लक्खी मेले का समापन द्वादशी को होगा। द्वादशी को बाबा श्याम को खीर चूरमे सहित छाप्पन भोग का विशेष भोग लगाया जाएगा। इसके बाद मेले का समापन होगा। द्वादशी के दिन श्याम दरबार सूरजगढ की ओर से मंदिर के शिखर पर वर्ष भर लहराने वाली ध्वजा चढाई जाएगी। मंदिर के प्रधान सेवक हजारीलाल इंदौरिया ने बताया कि सूरजगढ़ वालों का 371 वां निशान बाबा के मंदिर में द्वादशी को सुबह सवा 11 बजे चढ़ाया जाएगा। यूं तो श्याम भक्तों द्वारा लाए जा रहे सभी निशान बेहद खास हैं। लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं एक निशान के बारे में जो सबसे अहम है। वो इसलिए कि सारे निशानों में से सिर्फ ये ही निशान खाटूश्यामजी के मंदिर के शिखर पर सालभर लहराता है। हम बात कर रहे है सूरजगढ़ के निशान की। खाटूश्यामजी के शिखर पर वर्ष भर लहराने वाले झुंझुनू जिले के सूरजगढ़ शहर के ध्वज का इतिहास बड़ा निराला है। पिछले 370 साल से यह निशान लेकर सूरजगढ़ से करीब दस हजार पदयात्री खाटू पहुंचते है। निशान पदयात्राा में करीब महिलाएं भी शामिल होती है जो अपने सिर पर सिगड़ी रख कर चलती है। इस सिगड़ी में बाबा श्याम की जोत जलती रहती है। पदयात्रा के साथ कांसी की थाली से बनी एक झालर एवं ढप की आवाज पर मंदिर के सेवक हाथों में मोरछड़ी लेकर नाचते हुए चलते हंै। ऐसा माना जाता है कि जो महिला अपने सिर पर सिगड़ी रखकर यात्रा करती है उनकी प्रत्येक मनोकामना श्याम बाबा पूर्ण करता है।

आज चढ़ेगा सूरजगढ़ का निशान
सूूरजगढ़ वालों का 371 वां निशान बाबा के मंदिर में द्वादशी को सुबह सवा 11 बजे चढ़ाया जाएगा। जो वर्ष भर मंदिर के शिखर पर लहराता है।

सूरजगढ़ के निशान की महिमा व इतिहास दंतकथा है कि सीकर जिले के खण्डेला कस्बे के एक व्यक्ति की बाबा श्याम में गहरी आस्था था। वह हर साल मेले में खण्डेला से खाटूधाम निशान लेकर जाया करता था। उस श्याम भक्त ने एक बार अन्य श्याम भक्तों को बताया कि बाबा श्याम उसके सपन में आए और खण्डेला की बजाय सूरजगढ़ से आकर निशान चढ़ाने की बात कही। इसके बाद से सूरजगढ़ के निशान की परम्परा शुरू हो गई। कई श्याम भक्तों ने इसे बढ़ाया, जिसमें श्याम भक्त मंगलाराम यादव, सांवलराम और सूरजगढ़ के अमरचंद भोजराजका का परिवार की भूमिका अहम है।

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