इस दौरान 1972 में एक अभियान के तहत उत्तराखंड में उनकी टीम ने हजारों की संख्या में पौधे लगाए। भगवानसिंह के पौधरोपण के अपार उत्साह को देखकर ऋषिकेश के तत्कालीन जिला कलेक्टर ने उनके कार्य की सराहना की तथा रिटायरमेंट के बाद खुद के गांव को हरा भरा करने की बात कही।
इसी से प्रेरित होकर भगवानसिंह ने 1985 में भारतीय सेना से सेवानिवृत्ति के बाद अपने गांव आ गए और पौधरोपण का काम शुरू कर दिया। भगवान सिंह 13 जगहों पर करीब एक लाख पौधे लगा चुके हैं। पौधों के लिए तीन बड़े व सात छोटे बांध भी बनवा चुके हैं।
भगवान सिंह ने नारे में स्कूल, श्मशान भूमि, भरथरी मंदिर, ठाकुर मंदिर, शनि मंदिर, तालाब, लंबा बाग, बड़ा बाग, सफेदाबाग, बड़ा कुआं, खटखट मोड तथा नारे के जंगल में विभिन्न किस्मों के करीब एक लाख पौधे लगा चुके हैं। भगवान सिंह की स्वयं की जमीन पर करीब 50 हजार पौधे मौजूद हैं।
इतनी बड़ी वन संपदा होने के बावजूद भी भगवान सिंह पेड़ों को बेचने व स्वयं के कार्य के लिए उपयोग में नहीं लेते है। गांव में गरीब व जरूरतमंद परिवारों को को पेड़ सूख जाने पर निशुल्क उपलब्ध करवाते हैं। भगवान सिंह लोगों को शाहकारी व चरित्रवान बनने का भी संदेश देते हैं।
सुबह उठने के साथ हाथ गाड़ी में पानी के ड्रम लादकर दो किमी पैदल जंगल में जाते हैं। जंगल में पक्षियों के लिए पानी डालना उनकी दिनचर्या का अहम हिस्सा है। भगवान सिंह द्वारा सेवा की अनूठी मिसाल कायम करने के बावजूद भी आज तक पर्यावरण मंत्रालय व पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करने वाली संस्थाएं अनजान बनी हुई है।