सीकर रेलवे स्टेशन ( sikar railway station ) का भवन 1921 में जयपुर स्टेट के महाराजा सवाई माधो सिंह ( Maharaja Sawai Madho Singh ) ने बनवाया था। 12 जुलाई 1922 को पहली ट्रेन जयपुर से सीकर पहुंची थी। सीकर में पहले ओपन रेलवे स्टेशन था। हालांकि भवन गुंबद में छेद छोड़े हुए थे। जिनकी सहायता से टेंट भी लगाया जाता था। आज की बात करें तो सीकर जंक्शन का रुप ले चुका है। सीकर रेलवे स्टेशन से विभिन्न मार्गो के रोजाना 12 फेरे संचालित हैं।
सीकर का इतिहास ( history of sikar )
सीकर के तत्तकालीन राजा राव राज कल्याण सिंह अपने वचन के इतने पक्के थे कि बेटे की शादी के लिए दिया वचन निभाने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। वर्ष 1933 में कल्याण ङ्क्षसह के बेटे राजकुमार हरदयाल सिंह की सगाई ध्रांगध्रा ( काठियावाड़) की राजकुमारी के साथ हुई थी। लेकिन, सगाई इस शर्त पर हुई कि राजकुमार विवाह से पहले विदेश नहीं जाएंगे। सन् 1938, 11 फरवरी को कल्याण सिंह को पता चला कि जयपुर के सवाई मानसिंह उनके बेटे हरदयाल सिंह को मई में अपने साथ इंग्लेंड ले जाएंगे। इस बात पर राजा कल्याण सिंह सहमत नहीं हुए और इसकी अनुमति नहीं दी।
बावजूद इसके कैप्टन वेब हरदयाल सिंह को परीक्षा समाप्ति से पहले ही अजमेर के मेयो कॉलेज से निकालकर जयपुर ले गए। इसी बात को लेकर सवाई मानसिंह और रावराजा में दूरियां बढ़ गई। जयपुर के इंस्पेक्टर जनरल पुलिस यंग सीकर पहुंच कर कल्याण सिंह से वार्ता के दौरान देवीपुरा कोठी से उनको गिरफ्तार करने की कोशिश की। लेकिन, कल्याण सिंह सुरक्षित वापस गढ़ तक पहुंचने में सफल रहे।
इसके बाद स्थिति युद्ध वाली बन गई। उनकी रक्षा के लिए प्रमुख जागीरदारों सहित लगभग 30 हजार राजपूत भी सीकर पहुंचे। सीकर शहर के दरवाजे बंद कर दिए गए और हड़ताल की घोषणा कर दी गई। फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़ और रामगढ़ में भी इस हड़ताल का अनुसरण किया गया। जयपुर प्रशासन किसी भी कीमत पर कल्याण सिंह को जयपुर बुलाना चाहता था किन्तु राव राजा नहीं जाना चाहते थे।
बजाज और मदनसिंह के प्रयास से समझौता
जमनानलाल बजाज और नवलगढ़ के मदनसिंह की मध्यस्थता के बाद दोनों पक्षों में समझौता हुआ। राजपरिवार के लोगों ने सीकर की चारदीवारी के प्रवेश द्वार खोल दिए और 23 जुलाई को सवाई मानसिंह जयपुर से हरदयाल सिंह को लेकर सीकर पहुंचे।