नहीं कर पाता मुंह खोलने की हिम्मत
मजबूरी में कर्जा लेने वाले परिवार सूदखोरी की धमकियों को महीनों तक सहते रहते हैं, लेकिन कोई बोलने की हिम्मत नहीं कर पाता है। यदि कोई बोलने की हिम्मत भी करता है उसका मुंह बंद करा देते है। पीडि़त नरोत्तम शर्मा बताते हैं कि इनका सिस्टम इतना लंबा है कि दवाब में आने पर खुद के पैसों के लिए दूसरे सूदखोर के चंगुल में फंसा देते हैं।
मकान नाम कराने का बनाया दवाब
नीमकाथाना निवासी रमेश ने वर्ष 2015 में व्यापार में घाटा लगने पर इलाके के व्यापारियों से दस लाख रुपए उधार लिए। पहले तो राशि दो रुपए सैकड़े में लेने की बात हुई। लेकिन निश्चित समय पर पैसा नहीं मिलने पर पैनल्टी बढ़ती गई। आखिर में पैसा ज्यादा होने पर मकान को अपने नाम कराने का दवाब बनाने लगे।
छात्रों को भी नहीं छोड़ा
क्रिकेट सट्टे से जुड़े सूदखोरों ने विद्यार्थियों को भी नहीं छोड़ा। हालत यह है कि गलियों में क्रिकेट का मैच देखने के लिए जाने वाले युवाओं को अपने चंगुल में लेते है। पहले तो एक-दो मैच उधारी में छोटी राशि के करा देते हैं। इसके बाद शौक लगते ही पांच से दस हजार का सट्टा भी करा देते हंै। बाद में पैसे नहीं देने पर कोचिंग व परिजनों से सम्पर्क करने की धमकी देकर मोटी रकम वसूलते हैं।
व्यापार के लिए लिया पैसा, छोडना पड़ा शहर
व्यापार की मजबूरी व स्टॉक के लालच में भी कई व्यापारी भी सूदखोरों में चंगुल में आए। कई लोगों ने अपनी संपति बेचकर जैसे-तैसे सूदखोरों से पीछा छुड़ाया। शहर के राधाकिशनपुरा क्षेत्र के एक कारोबारी ने अपने रिश्तेदारी व अन्य परिचितों से लेकर पैसा लेकर चुकाया। इससे पहले उसने पुलिस को शिकायत दी। लेकिन सूदखोरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी।
आंकड़ों के जरिए समझें गणित
205 से अधिक मामले पुलिस थानों में करवाए दर्ज
10 करोड़ से अधिक कारोबार प्रतिदिन
28-35 फीसदी लोग मजबूरी में लेते हैं सूदखोरों से पैसा
15 सूदखोरी के कारण 15 से ज्यादा मिले हैं सुसाइड नोट
30-45 फीसदी लोगों को क्रिकेट सट्टे के लिए चाहिए रुपए
15 से अधिक शेखावाटी में हर दिन शिकायत
15-20 फीसदी लोगों को ही पैसा व्यापार में लगाना होता है
2.5 हजार से ज्यादा सूदखोर हैं शेखावाटी के तीनों जिलों में