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VIDEO : आजादी के 70 साल बाद भी गुलाम है राजस्थान का ये गांव, यहां के लोग राष्ट्रपति तक से लगा चुके हैं गुहार

SHOBHA KA WALI KOTHI SIKAR : यहां के लोग किसी की शवयात्रा तक ठीक से नहीं निकाल पाते हैं। शव अर्थी से नीचे गिरने का भय बना रहता है।

सीकरFeb 05, 2018 / 12:49 pm

vishwanath saini

सीकर.

गुलामी का वो दौर तो आपने बड़े-बुजुर्गों से सुना ही होगा। किस कदर अंग्रेज शासन किया करते थे। तमाम मूलभूत व्यवस्थाओं पर उनका राज हुआ करता था। अंग्रेजों से पंगा लेने वालों की राह वो मुश्किल कर देते थे। वर्ष 1947 में हम आजाद हो गए और अंग्रेजों का जमाना भी चला गया, मगर आज हम आपको लेकर चलते हैं एक ऐसे गांव में जहां के लोग आजादी के 70 साल बाद भी गुलामी जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं। गुलामी का मतलब व्यवस्थाओं के हाथों गुलाम होना है ना कि अंग्रेजों की गुलामी।

 

 

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ये गांव है राजस्थान के सीकर जिला मुख्यालय से करीब 13 किलोमीटर दूर रानोली ग्राम पंचायत का शोभा का वाली कोठी। यहां के लोग किसी की शवयात्रा तक ठीक से नहीं निकाल पाते हैं। शवयात्रा के दौरान हर समय शव अर्थी से नीचे गिरने का भय बना रहता है।

 

इसकी वजह है कि गांव के बीच से रेल पटरियों का गुजरना, जिनके कारण गांव में आबादी क्षेत्र एक तरफ है तो श्मशाम भूमि दूसरी तरफ। समस्या ये है कि पटरियों पर खड़ी (135 डिग्री की) चढ़ाई है, जिसे पैदल ही पार कर पाना मुश्किल है जबकि यहां से शवयात्रा गुजरती है। दिक्कत केवल शवयात्रा में नहीं आती बल्कि शोभाका वाली ढाणी में जब कोई बारात आती है तब भी घोड़ी पर सवार दूल्हे के लिए पटरियां पार करना जान जोखिम में डालने के समान है।

आवागमन का एकमात्र रास्ता
करीब 600 घरों की आबादी वाली शोभा का वाली कोठी में कोई स्थायी आम रास्ता नहीं है। लोग पटरियों के ऊपर से ही आवागमन करते हैं। मोटरसाइकिल व अन्य वाहन के लिए खेतों से अस्थायी रास्ते का इस्तेमाल करते हैं।


राष्ट्रपति तक लगा चुके हैं गुहार
शोभा का वाली कोठी के लोगों का कहना है कि वे लम्बे समय से ढाणी के रास्ते के लिए गुहार लगा रहे हैं। इसके लिए न केवल अधिकारी व जनप्रतिनिधि बल्कि राष्ट्रपति तक ज्ञापन भेज चुके हैं, मगर समस्या से मुक्ति नहीं मिल रही।

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युवक की हार्ट अटैक से मौत

शोभा का वाली कोठी में युवक बनवारी लाल की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। रविवार को उसका पटरियों के पार स्थित श्मशान भूमि में दाह संस्कार किया गया। शवयात्रा निकाली तो बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

सिर्फ आश्वासन ही मिला रहा

शोभा का वाली के उदाराम सैनी, भूराराम, झाबरमल, छिगनलाल, नाथूराम, मुन्नाराम आदि ने बताया कि देश 70 साल पहले आजाद हो गया था किन्तु ढाणी वासी आज भी रास्ते की दृष्टि से परतत्रंता की बेडिय़ों में जीवन जीने को मजबूर हैं। ग्रामीणों ने रास्ते के लिए विधायक, सांसद, रेलमंत्रालय तक चक्कर लगाए हैं, किन्तु बार-बार सिर्फ आश्वासन ही मिला।

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