व्यापारी दंपत्ति ने पेश की मिसाल
यह घटना ग्राम एजवारा में निवासरत थान सिंह यादव की पुत्री के विवाह से जुड़ी हुई है। परिवार में पहली शादी होने से खुशी का माहौल था, लेकिन दुल्हन के सगे मामा नहीं होने से मंडप के नीचे भात पहनाते वक्त की रौनक गायब थी। चूंकि दुल्हन के मामा नहीं थे तथा नाना 30 वर्ष पहले ही साधु-सन्यासी हो कर घर छोड़ चुके थे। ऐसे में जब शादी की तारीख नजदीक आई तो दुल्हन की मां को अपने पिता की याद सताने लगी। जब खोज खबर की तो उत्तरप्रदेश के गौतमबुद्ध नगर के जेवर शहर में साधु भेष धारण करे हुए पिता से मुलाकात हुई। बेटी पिता से मिलने पहुंची तो सन्यासी पिता ने अपनी बेटी तथा दामाद को कोई भी सहायता देने से इंकार करते हुए शादी में आने से मना कर दिया था। उसी समय वहां मौजूद जेवर शहर के फुटवियर व्यापारी गोविंद सिंघल ये सभी घटनाक्रम देख व सुन रहे थे।
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बहन का रुदन सुना तो रहा नहीं गया
व्यापारी गोविंद सिंघल के अनुसार जब उन्होंने बिना भाई की बहन का रुदन सुना तो उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने उसी समय फैसला किया कि जिस तरह से भगवान कृष्ण की कथाओं में वर्णित नरसी भात प्रसंग में भात पहनाया गया था, उसी तरह मैं भी इस बहन को भात पहनाने जाउंगा। गोविंद सिंघल के इस फैसले में उनका परिवार भी खुशी-खुशी सहमत हुआ। बीते 21 नवंबर को नोएडा के निकट से शादी में चढ़ाए जाने वाले भात का सामान लेकर रवाना हुए। शादी में दुल्हन के लिए जो सामान भात में आया, उसमें करीब 9 तौले सोने के जेवर, 1 किलो चांदी के जेवर, एक स्मार्ट फोन दूल्हे के लिए, 1 लाख नगदी, करीब 350 साडिय़ां गांव की सभी महिलाओं के लिए, करीब 100 जोड़ी पेंट-शर्ट सभी गांव वालों के लिए तथा करीब 700 गमछे प्रत्येक बाराती के लिए उपहार स्वरुप लेकर आए।
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