भारत में 73 साल पहले तक चीते हुआ करते थे। इतने सालों बाद फिर से चीतों की वापसी हो रही है। वर्ष 1947 में ली गई सरगुजा महाराज रामानुशरण सिंह के साथ चीते की तस्वीर को अंतिम मान लिया गया था। इसके बाद 1952 में देश को चीता लुप्त घोषित कर दिया गया था।
73 साल बाद मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के कूनो नेशनल पार्क में 16 अफ्रीकन चीतों को अगस्त माह में छोड़ा जाएगा। हाल ही में मध्यप्रदेश के अधिकारियों के दल ने अफ्रीका पहुंचकर चीतों को भारत लाने के लिए औपचारिकताएं पूरी की थी। इसके बाद इन दिनों अफ्रीकन अधिकारियों का एक दल नेशनल पार्क का जायजा लेने के लिए आया हुआ है।
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अफ्रीका से श्योपुर आया दल
कूनो नेशनल पार्क में अफ्रीकी चीते बसाने की कवायद तेज होती नजर आ रही है। यही वजह है कि कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) चीतों के लिए अनुकूलता और व्यवस्थाओं का जायजा लेने के लिए साउथ अफ्रीका और नामीबिया से तीन सदस्यीय टीम श्योपुर पहुंची। टीम ने श्योपुर पहुंचकर दोपहर बाद कूनो डीएफओ और अन्य अधिकारियों के साथ कूनो नेशनल पार्क का भ्रमण किया।
बताया गया है कि अफ्रीका से आई ये तीन सदस्यीय टीम सोमवार को भारत आ गई थी और सवाईमाधोपुर में नाइट स्टे के बाद मंगलवार दोपहर श्योपुर पहुंची। इसके बाद टीम ने कूनो नेशनल पार्क में पहुंचकर स्थानीय अधिकारियों के साथ पूरे पार्क के वनक्षेत्र की स्थिति जानी, साथ ही चीतों के लिए बनाए गए 5 वर्ग किलोमीटर के विशेष बाड़े का निरीक्षण कर व्यवस्थाएं देखी। अफ्रीका से तीन सदस्यीय टीम में डॉ. लारी मार्कर, डॉ. एड्रियन, विसेंट एंड कारो शामिल हैं, वहीं देहरादून से भारतीय वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉ. वायवी झाला और विपिन भी साथ आए हैं।
चार दिन पहले ही अफ्रीका से लौटी है हमारी टीम
चीता प्रोजेक्ट के अंतर्गत हमारी भी एक पांच सदस्यीय टीम गत 29 मई से 9 जून तक दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया का दौरा कर लौटी है। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के डीआइजीएफ राजेंद्र गरवाड़, कूनो नेशनल पार्क के डीएफओ पीके वर्मा, भारतीय वन्यजीव संस्थान से डॉ.विपिन, कूनो नेशनल पार्क के एसडीओ फॉरेस्ट अमृतांशु सिंह और पशु चिकित्सक डॉ.ओंकार अचल की टीम ने अफ्रीका में ट्रैनिंग ली और चीतों के व्यवहार व रहन स हन की जानकारी ली। अब अफ्रीका की टीम यहां व्यवस्थाओं का जायजा लेने आई है।
इसलिए चुना कूनो पार्क को
मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीतों के लिए सुरक्षा, शिकार और आवास की भरपूर जगह है, जो इनके लिए उपयुक्त है। हर चीते के रहने के लिए 10 से 20 वर्ग किमी एरिया और उनके प्रसार के लिए पर्याप्त जगह होना चाहिए। यह सभी चीजें कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में मौजूद है।
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एक नजर
एक छोटी सी छलांग में 80 से 130 किमी प्रति घंटे की रफ्तार में दौड़ सकता है।
इसी स्पीड से 460 मीटर तक लगातार दौड़ सकता है।
3 सेकंड में ही 103 की रफ्तार पकड़ लेता है। चीता शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द चित्रकायः से हुई है।
23 फीट की एक लंबी छलांग लगा सकता है।
दौड़ते वक्त आधे से अधिक समय हवा में रहता है।