मंदिर में शिवलिंग के दर्शन करने पर अक्सर यह सवाल उठता है कि विराट मंदिर के अंदर स्थापित शिवलिंग छोटे क्यों है? इसके जबाब में पुरातत्व विभाग का मानना है कि जिस प्रकार शरीर में आत्मा का स्वरूप सूक्ष्म होता है। उसी प्रकार विराट मंदिर में परमात्मा के स्वरूप में शिवलिंग विराजमान है। कल्चुरी कालीन राजा युवराजदेव प्रथम भगवान शिव के उपासक थे और उन्होने ही सामाजिक और आध्यात्मिक विकास के दृष्टिकोण से विराट मंदिर का निर्माण कराया था। दसवीं शताब्दी उत्तरार्ध में निर्मित इस मंदिर में पूर्व की ओर मुख्य द्वार है। यह मंदिर वेसर शैली में बनी है। जिसमें मंडप, अंतराल और गर्भ गृह है।
भगवान शिव का प्रसिद्ध विराट मंदिर तथा उसकी उच्च शिल्प कला को देखकर हमें चंदेलकालीन खजुराहो मंदिरों की याद आती है। मंदिर के गर्भ के प्रवेश द्वार शाखाएं नदी देवियों एवं उनके अनुचरों से अलंकृत हैं। सिरदल भाग पर सरस्वती गणेश के मध्य नटराज नवग्रह तथा सप्त मातृकाओं से युक्त है। गर्भ गृह के मध्य शिवलिंग प्रतिस्थापित है, बाह्य भित्तियों मेंं दिक्पाल वसु, शिव की विविध रूपों में अजपाद शिव, शिव परिवार, विष्णु अवतार, नायिकाओं, मिथुन दृश्य तथा गजशार्दुल का शिल्पांकन है। पुरातत्व विभाग के अनुसार विराट मंदिर में योग मुद्रा में भगवान शिव और विष्णु जी की विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमाएं स्थापित हैं। साथ ही सर्वाधिक प्रतिमाएं नायिकाओं की है। विभिन्न अभिलिखित योगिनी प्रतिमाएं जिस संख्या में यहां हैं। देश या प्रदेश के किसी भी स्थल में नहीं हैं।
वर्तमान में विराट मंदिर का शिखर करीब डेढ़-दो फीट पीछे की ओर झुक गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने मंदिर को संरक्षित एवं सुरक्षित करने का प्रयास भी किया है और मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है, लेकिन मंदिर का शिखर पूर्व स्थित में नहीं आ पाया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि निर्माण कार्य के दौरान आधुनिक पद्धति की बजाय पौराणिक पद्धति का इस्तेमाल किया गया है। जिससे मंदिर का मूल स्वरूप नही बिगड़ा है।