पत्रिका पड़ताल के दौरान जिला अस्पताल में वार्ड में तैनात अधिकतर महिला कर्मचारियों का कहना था कि उन्हें अग्निशामय यंत्र चलाने आता है। हर वर्ष प्रशिक्षण दिया जाता है। हालांकि अधिकतर कर्मचारियों में आत्मविश्वास नहीं झलका और उनमें से किसी ने भी यह बताना जरूरी नहीं समझा कि आग बुझाने के लिए वह किस तरह से सिलेंडर का प्रयोग करेंगे। इसके अलावा अस्पताल के अंदर की गलियां काफी सकरी नजर आई। वहीं वार्ड में मौजूद मरीजों के परिजनों में से अधिकतर को अग्निशामक यंत्र चलाने को लेकर जानकारी नहीं थी। अस्पताल में अलार्म सिस्टम, पानी के फव्वारे, टैंक, स्मोक डिटेक्टर की भी सुविधा दिखाई नहीं दी। ऐसे में अगर अस्पताल में आग लग गई तो इन सुविधाओं के अभाव में त्वरित आग बुझाना मुश्किल होगा।
किसी भी अस्पताल में आग से निपटने के लिए जरूरी है कि वहां अग्नि कम्पार्टमेंटेशन, प्रर्याप्त अग्निशामक यंत्र, निकास मार्ग, निकासी योजना, अलार्म सिस्टम, पानी के फव्वारे, टैंक, स्मोक डिटेक्टर, फायर हाइड्रेंट, बेसमेंट में स्मोक आउटलेट और एयर इनलेट की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अलावा बहुमंजिला इमारतों में वेंटिलेशन डक्ट होने चाहिए। समय-समय पर मॉक ड्रिल भी जरूरी है। जिससे कर्मचारी हमेशा जागरूक रहें। वहीं अस्पताल में आने वाले मरीजों के परिजनों को भी इसकी जानकारी देनी चाहिए। अस्पताल में रसोई घर है तो वहां प्रशिक्षित कर्मचारी जरूरी है। समय-समय पर यहां जांच भी होनी चाहिए।
अग्निशामक विभाग से सेवानिवृत्त राकेश बाजपेयी का कहना है कि अस्पतालों में बढ़ती आग की घटनाएं चिंताजनक है। आग से बचाव की पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए। समय-समय पर बिजली के तारों व अन्य व्यवस्था से संबंधित हर चीज की जांच होनी चाहिए। कोई गड़बड़ी हो, तो उसे तत्काल ठीक कर लिया जाए तो इस तरह के हादसों से बचा जा सकता है। प्रतिदिन बिजली विशेषज्ञ यह सुनिश्चित करें कि बिजली आपूर्ति में कोई तकनीकी खराबी तो नहीं है। साथ ही धुआं निकासी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। सरकारी व निजी अस्पतालों में अग्निशमन यंत्र पर्याप्त मात्रा में होने चाहिए। इसके लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की नियुक्ति भी जरूरी है। साथ ही एक विशेष टीम का गठन करना चाहिए, जो नियमित रूप से सभी अस्पतालों में औचक निरीक्षण कर खामियों को दूर करवाए। बिजली की फिटिंग की जांच होती रहनी चाहिए। अस्पतालों के आसपास धूम्रपान सख्ती से रोकना होगा। हर अस्पताल के आसपास कम से कम एक दमकल गाड़ी 24 घंटे खड़ी रखनी चाहिए, ताकि तत्काल आग बुझाई जा सके। गर्मी के कारण पुराने तार पिघलकर आपस में चिपक जाते हैं जिससे आग लगने की आशंका बढ़ जाती है। अत: अस्पतालों में हीट प्रूफ और वाटर प्रुफ वायरिंग होनी चाहिए। जिसकी समय-समय जांच करते रहना चाहिए। गैस सिलेंडरों में जरा भी लीकेज होने का अंदेशा हो, तो तुरंत बदल देना चाहिए। अस्पताल के हर कमरे में एक अग्निशामक यंत्र अवश्य रखा होना चाहिए, जिसे इस्तेमाल करने की जानकारी अस्पताल के हर स्टाफ को होनी चाहिए। मरीजों के प्रत्येक वार्ड में एक इमरजेंसी बटन होना चाहिए, जिसका सीधा कनेक्शन फायर ब्रिगेड के कंट्रोल रूम से होना चाहिए, ताकि आपातकालीन स्थिति में मरीजों की जान बचाई जा सके। प्रत्येक अस्पताल में फायर सेफ्टी पर खास ध्यान देना होगा। अस्पताल स्टाफ को यह समझाना होगा कि आग लगने पर क्या किया जा सकता है। लापरवाही की वजह से अगर अस्पताल में आग लगी, हो तो कड़ी कार्रवाई जरूरी है, ताकि भविष्य में ऐसी घटना न हो।
वार्ड में जगह-जगह अग्निशामक यंत्र लगे हुए हैं। समय-समय पर मॉक ड्रिल भी कराई जा रही है। वायरिंग पुरानी है जिससे बदलवाया जा रहा है। जिला अस्पताल में आने वाले समय में आग से निपटने के लिए सभी सुविधाएं होंगी। इस पर काम चल रहा है।
वीके नावकर, सिविल सर्जन, सिवनी