इस तस्वीर को देखकर साल 1957 में आई फिल्म मदर इंडिया का वो सीन याद आ जाता है जिसमें एक मां अपने दो बेटों को बैल बनाकर हल से खेत जुताई करती है, रुपहले पर्दे की यह कहानी हकीकत में सीहोर के नानकपुर में देखने को मिली है। बस यहां अंतर सिर्फ इतना है कि मां की जगह भाई और बेटों की जगह बहन बैल बनने मजबूर हैं। पिता की मौत के बाद घर की माली हालत इतनी बिगड़ी कि जिस उम्र में बच्चों के हाथ में किताब, कॉपी होना थी, उसमें चार लोगों का पेट पालने के लिए बैल भी बनना पड़ रहा है।
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सीहोर जिले के आष्टा के पास नानकपुर गांव है जहां शैलेंद्र कुशवाहा और उसकी बहन नेहा और नैनसी रहते हैं। शैलेंद्र ने बताया कि साल 2010 में पिता सागर कुशवाहा की मौत के बाद विधवा मां उर्मिलाबाई के सामने मानों पहाड़ जैसी स्थिति खड़ी हो गई। एक तरफ मां के सामने छोटे, भाई बहनों का पालन पोषण तो दूसरी तरफ तीन एकड़ जमीन में बिना कृषि यंत्र के सहारे खेती करना एक चुनौती था। उस समय महज आठ साल की उम्र में विधवा मां के साथ खेती में हाथ बटाना शुरू किया, लेकिन परेशानी कम नहीं हुई।
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बैल खरीदने तक के नहीं पैसे
शैलेंद्र ने बताया कि आर्थिक तंगी के चलते बैल और अन्य कृषि संसाधन खरीदना संभव नहीं था। इस कारण शुरूआत में खेती में जुताई करने मां हल जोतती थी, जबकि वह पीछे से हल को धक्का देकर सहारा देते थे। बहन बड़ी हुई तो पांच-छह साल से उन्हीं की मदद से खेती करते हैं। बहन ही दोनों तरफ हल को पकड़कर खींचती हैं और वह पीछे से धकाते हुए चलते हैं। इसी तरह से बुआई का कार्य करते हैं। बोवनी के लिए खाद बीज की व्यवस्था करने मजदूरी कर पैसे जुटाना पड़ते हैं।
सरकारी मदद का नहीं मिला लाभ
उर्मिलाबाई का आरोप है कि ग्राम पंचायत में कई बार समस्या बताकर मदद की गुहार लगाई, लेकिन सुनवाई नहीं हुई है। प्रधानमंत्री आवास योजना में आवास और न ही शौचालय का लाभ मिला। यह तक ही नहीं पति की मौत के बाद आर्थिक स्थिति बेकार होने पर भी अन्य योजनाओं के लाभ से वंचित हैं।