वर्तमान स्थिति में, शनि के छल्ले पृथ्वी की ओर 9 डिग्री के कोण पर नीचे की ओर झुके हुए हैं और 2024 तक यह कोण घटकर केवल 3.7 डिग्री रह जाएगा। आखिरी बार यह दुर्लभ खगोलीय घटना सितंबर 2009 में हुई थी और इससे पहले फरवरी 1996 में। ‘ओझल’ हो जाने के बाद अक्टूबर 2038 तक दोबारा शनि को इस अनोखे नजरिए से देखने का मौका नहीं मिलेगा। हालांकि, शनि के छल्लों का गायब होना अस्थायी होगा, लेकिन वैज्ञानिक चेतावनी दे चुके हैं कि करोड़ों साल बाद किसी दिन शनि के ये छल्ले हमेशा के लिए भी गायब हो सकते हैं क्योंकि इनकी सामग्री बड़ी मात्रा में लगातार शनि ग्रह पर गिर रही है।
बर्फ और धूल के कणों से बने हैं यह वलय
शनि के छल्ले मुख्य रूप से बर्फ, चट्टान और धूल के कणों या टुकड़ों से बने हैं जो ग्रह के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण आपस में फंस गए हैं। जबकि कुछ कण धूल के कण जितने छोटे होते हैं, वहीं कुछ पहाड़ जितने बड़े भी हो सकते हैं। यह भी माना जाता है कि छल्ले धूमकेतुओं, क्षुद्रग्रहों और चंद्रमाओं के टूटे हुए अवशेषों से बने हैं जो शनि के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण से टूट गए थे। हालांकि, ये वास्तव में कब बने थे, यह खगोलविदों के बीच बहस का विषय बना है, प्रतिस्पर्धी सिद्धांत बताते हैं कि वे सौर मंडल जितने पुराने या अपेक्षाकृत युवा हैं।
नंबर गेम
-9 गुना अधिक है पृथ्वी की तुलना में शनि का व्यास
-146 ज्ञात चंद्रमा है शनि के, कुछ बुध ग्रह जितने बड़े
-10,756 पृथ्वी दिवस में सूर्य की एक परिक्रमा करता है शनि
फैक्ट फ्रंट
-शनि सूर्य से छठा ग्रह है और सौर मंडल में बृहस्पति के बाद दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है।
-इसे अपने सूर्य के छल्लों के कारण ‘सौर मंडल का गहना’ माना जाता है।
-यह एकमात्र ऐसा ग्रह नहीं है जिसके छल्ले हैं लेकिन शनि जितने सुंदर किसी के नहीं।
– बृहस्पति की तरह, शनि भी ज्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम से बनी एक विशाल गेंद है।
-शनि पर जीवन की संभावनाएं नहीं है लेकिन इसके कई चंद्रमाओं में से कुछ पर जीवन हो सकता है।
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