दुनिया भर के लोगों का मानना है कि अक्टूबर 1957 में दुनिया के पहले उपग्रह के रूप में रूस ने स्पुतनिक यान से अमरीका समेत पूरी दुनिया को चौंका दिया। ज्यादातर वैज्ञानिक इसे अंतरिक्ष में राष्ट्रों की प्रतिस्पर्धा के रूप में याद करते हैं। इस घटना ने शायद उस समय अमरीकी जनता के विश्वास को डिगा दिया कि उनका देश तकनीकी प्रगति में रूस से कहीं पीछे है। प्राथमिक रूप से यह सच भी था। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों का एक समूह स्पुतनिक की पहली उड़ान की शाम को वाशिंगटन में इकट्ठा हुआ और इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ साइंटिफिक यूनियंस के अध्यक्ष अमरीकी नागरिक लॉयड बर्कनर ने भी सोवियत संघ की इस सफलता पर खुशी जताई। 2017 में सार्वजनिक हुई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर ने कहा कि इस यान से देश को कोई खतरा नहीं है। नासा के पूर्व मुख्य इतिहासकार रॉजर लॉनियस ने भी कहा कि इस बात से लोग बहुत ज्यादा हैरान नहीं थे। इतना ही नहीं स्पुतनिक की लॉन्चिंग के समय तक अंतरिक्ष दौड़ पहले ही शुरू हो चुकी थी। उस समय तक अमरीकी सरकार भी स्पुतनिक जैसे ही सैटेलाइट पर काम कर रही थी। यह सर्वविदित था कि जो भी अंतरिक्ष में पहला कदम रखेगा वहीं दुनिया का नेतृत्व करेगा। इसलिए यह कहना कि स्पुतनिक के कारण अमरीका ने ईष्र्या में अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा शुरू की थी वास्तव में सच नहीं है
‘मून शॉट’ एक कहावत बन गया था। ऐसे सार्वजनिक उद्देश्य जिसे पूरा करने में जनसमर्थन की जरुरत पड़ेगी और जो राष्ट्रहित से जुड़ा हो उसे संबोधित करने के लिए मून शॉट का उपयोग किया जाने लगा था। 1969 के अमरीकी चंद्र मिशन के बारे में यह प्रचलित है कि इसने अमरीका में नस्लभेद,रंगभेद और ऊंच-नीच के फर्क को खत्म करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस मिशन की सफलता ने अश्वेत-श्वेत अमरीकी, ऑक्टोजेनेरियन, हिप्पी, अमरी-गरीब, शहर-गांव और डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन के बीच के अंतर को मिटाकर एक राष्ट्र के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। नागरिक अधिकार आंदोलन, वियतनाम युद्ध और नस्लभेद ने अमरीका को पूरी तरह अलग-थलग कर दिया था। 1969 में प्रकाशित एक संपादकीय में कहा गया कि ऐसा लगता है कि अमरीकी सरकार प्रतिस्पर्धा और तरक्की की आग में अमरीकी जनता के सपने को रौंदने से भी बाज नहीं आएगी। सबसे बड़ा दुख इस बात का है कि इस जिद में अरबों डॉलर फेंक दिए जाएंगे। नासा के प्रमुख इतिहासकार बिल बैरी कहते हैं कि 1960 के दशक में अपोलो कार्यक्रम लोगों में लोकप्रिय नहीं था और जनमत संग्रह में इसे 50 फीसदी लोगों का ही समर्थन मिल सका।
आज केवल 64 फीसदी अमरीकी मानते हैं कि अंतरिक्ष मिशन महत्त्वपूर्ण हैं। जबकि 1979 में केवल 41 फीसदी ने कहा था कि अपोलो मिशन पर अरबों डॉलर खर्च करना बुद्धिमानी थी। लेकिन अपोलो 11 को ज्यादातर अमरीकी व्यर्थ मानते हैं। अमरीकी इतिहासकार गेरार्ड डीग्रूट मानते हैं कि अरबों रुपए और उस दौर की अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल लाखों अमरीकी जनता के भले को छोड़कर एक मिशन को कामशब बनाने में किया गया जिसका शायद ही कोई लाभ आम जनता को मिलता। लेकिन इन मिशन के दौरान चंद्रमा से एकत्र किए गए नमूनों, धूलकण और चट्टानों से यह पता चला कि कभी पृथ्वी और चंद्रमा एक बड़े ग्रह के हिस्से थे जो अंतरिक्ष में हुए एक बड़े विस्फोट के कारण अलग हो गए। इसलिए दोनों ग्रहों में जबरदस्त समानताएं हैं। इस खोज ने सौर प्रणाली के बारे में आकर्षक नए वैज्ञानिक प्रश्न और सिद्धांत खोजे। इससे हम पृथ्वी पर जीवन और उसे बनाए रखने वाली परिस्थितियों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलीं। ये ऐसी परिस्थितियां हैं जो ब्रह्मांड के किसी भी ग्रह पर जीवन के लिए जरूरी हैं।
चंद्रमा के पृथ्वी पर प्रभाव को लेकर भी कई भ्रांतियां मौजूद हैं। जैसे यह कि चंद्रमा पृथ्वी पर समुद्र में उठने वाले ज्वारभाटा को नियंत्रित करता है। दरअसल यह इतना सरल नहीं है। चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल महासागरों के जल को अपनी ओर खींचता है जिससे उसमें हलचल पैदा होती है। लेकिन यह ज्वार के लिए जिम्मेदार एकमात्र कारण नहीं है न ही इसके लिए सूर्य जिम्मेदार है। दरअसल, पृथ्वी की भौगोलिक परिस्थितियां सौरमंडल के अन्य ग्रहों की तुलना में ज्वार के लिए ज्यादा अनुकूल हैं। नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार पृथ्वी की स्थलीय बनावट, हमारे महासागरों की गहराई, लैंडमास के आकार और तटरेखाओं के आकार सहित कई ऐसे कारण है जिसके कारण यह अलग-अलग व्यवहार करती है। इसे यूं समझें कि चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव महासागरीय जल में हलचल पैदा करता है लेकिन क्योंकि महासागरीय जल महाद्वीपों और उथले तटों से गहरी खाइयों की ओर बहती है इसलिए यह ज्वारभाटा के प्रभाव को और बढ़ा देती है। इससे अलग-अलग स्थानों पर उच्च और निम्न ज्वार पैदा होता है। लेकिन इसके लिए अकेले चंद्रमा जिम्मेदार नहीं है।
पचास साल पहले चंद्र मिशन जेहन में आते ही बज़ एल्ड्रिन और नील आर्मस्ट्रांग के नाम उभरते थे लेकिन आज एलन मस्क और और रिचर्ड ब्रैनसन जैसे उद्यमी नासा के किसी भी वर्तमान अंतरिक्ष यात्री से बड़े नाम हैं। 2017 में रोलिंग स्टोन पत्रिका ने अपने कवर पर मस्क को एक अंतरिक्ष हेलमेट पकड़े हुए दिखाया। मैगजीन ने मस्क को भविष्य का वास्तुकार बताया। अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन, मंगल और अन्य जगहों पर यात्रा करने के उनके प्रयासों से कुछ लोगों को आश्चर्य भी हुआ है कि क्या अब निजी कंपनियां भी चंद्र अन्वेषण का दावा करेंगी। लेकिन इन कंपनियों के लिए यह राष्ट्रवादी मिशन नहीं है बल्कि अब च्रंद्र मिशन एक उभरता हुआ बाजार बन गया है जहां ऐसा प्रतीत हो रहार है कि निजी कंपनियों के इस क्षेत्र में आने से चंद्रमा का निजीकरण हो रहा है।
लेकिन निजी कंपनियों को अमरीकी सरकार से धन, सहायता और तकनीक प्राप्त होती है। स्पेसएक्स और बोइंग को नासा और पेंटागन से हुए अनुबंध के तहत अरबों डॉलर मिले हैं। नासा भी अंतरिक्ष यात्रियों के लिए प्राथमिक प्रशिक्षण मैदान बना हुआ है। कंपनियां आज नासा के संचालन पर अधिक प्रभाव डालती हैं। यहां तक कि पहला चंद्रमा मिशन भी अकेले सरकारी प्रयास का नतीजा नहीं थे।