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60 सालों में हुई है 30 प्रतिशत की बढोतरी
ब्रिटेन में एक्जेटर विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं और मौसम विभाग कार्यालय की यह आशंका कई कारकों पर आधारित है। इनमें मानवजनित उत्सर्जन बढ़ना और ऊष्णकटिबंधीय जलवायु परिवर्तनशीलता के कारण पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड लिए जाने में अपेक्षाकृत कमी आना शामिल हैं। इस बारे में एक्जेटर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रिचर्ड बेट्स ने कहा, ‘हवाई स्थित मौना लोआ वेधशाला में वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड की सघनता में 1958 से करीब 30 प्रतिशत बढोतरी दर्ज की गई है।’
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जीवाश्म ईंधनों, वनों की कटाई और सीमेंट उत्पादन के कारण बढ़ेगा उत्सर्जन
प्रोफेसर रिचर्ड बेट्स ने बताया कि ‘ऐसा जीवाश्म ईंधनों, वनों की कटाई और सीमेंट उत्पादन के कारण उत्सर्जन से हो रहा है। इसके अलावा इस साल कार्बन डाईऑक्साइड ग्रहण करने वाले प्राकृतिक स्रोतों के भी कमजोर रहने की आशंका है, इसलिए मानव जनित रिकॉर्ड उत्सर्जन का प्रभाव पिछले साल से भी अधिक होगा।’
2018 की तुलना में 2.75 भाग प्रति दस लाख (पीपीएम) अधिक उत्सर्जन का है अनुमान
मौसम विज्ञान कार्यालय ने आशंका जाहिर की है कि वायुमंडल में इस साल कार्बन डाईऑक्साइड (सीओटू) का उत्सर्जन 2018 की तुलना में 2.75 भाग प्रति दस लाख (पीपीएम) अधिक होगा। वहीं बेट्स का मानना है कि साल 2019 में औसत कार्बन डाईऑक्साइड सघनता 411.3 पीपीएम रह सकती है।