दरअसल, बायोसाइंस पत्रिका में छपी रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु आपाताकल की घोषणा पर हस्ताक्षर करने वाले वैज्ञानिकों ने इस रिपोर्ट में लिखा ‘वैज्ञानिकों का यह नैतिक दायित्व है कि वे किसी भी ऐसे संकट के बारे में स्पष्ट रूप से आगाह करे जिससे महान अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा हो।’ वहीं इस रिसर्च का नेतृत्व करने वाले ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता विलियम रिपल और क्रिस्टोफर वुल्फ ने लिखा ‘वैश्विक जलवायु वार्ता के 40 सालों के बावजूद हमने अपना कारोबार उसी तरह से जारी रखा और इस विकट स्थिति को दूर करने में असफल रहे हैं।’
जलवायु को लेकर वैज्ञानिक चेतावनी देते हुए वो कहते हैं कि जलवायु संकट आ गया है और वैज्ञानिकों की उम्मीदों से कहीं ज्यादा तेजी से ये बढ़ भी रहा है। वहीं इसको लेकर वैज्ञानिकों ने कई कदम उठाने के सुझाव भी दिए हैं। वैज्ञानिकों ने ईधन की जगह ऊर्जा के अक्षय स्त्रोंतों का इस्तेमाल, मीथेन गैस जैसे प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करना, धरती की परिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित करना, पौधे आधारित भोजन का इस्तेमाल करना, जानवर आधारित भोजन कम करना, कार्बन मुक्त अर्थव्यवस्था को विकसित करना और जनसंख्या को कम करना शामिल है।