12वें ज्योतिर्लिंग के रूप में विख्यात घुश्मेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में अब कर सकेंगे प्रवेश, पूजा पाठ से भी हटी पाबंदी
घुश्मेश्वर महादेव मंदिर ( ghushmeshwar shiv temple ) का मामला: अब मंदिर गर्भ गृह में प्रवेश किया जा सकेगा। पहले गर्भगृह में प्रवेश व पूजा-पाठ पर पाबंदी थी।
12वें ज्योतिर्लिंग के रूप में विख्यात घुश्मेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में अब कर सकेंगे प्रवेश, पूजा पाठ से भी हटी पाबंदी
सवाईमाधोपुर। अपर जिला न्यायाधीश मनोज कुमार गोयल ने हाल में दिए एक महत्वपूर्ण फैसले में शिवाड़ स्थित घुश्मेश्वर महादेव मंदिर ( Ghushmeshwar mandir shiwad ) के गर्भगृह में आम जन के प्रवेश व पूजा अर्चना पर लगी पाबंदी हटा ली है। निर्णय के बाद अब कोई भी महिला-पुरुष गृर्भगृह में जाकर पूजा-अर्चना कर सकेगा।
उल्लेखनीय है वादी नरेन्द्र कंवर ने घुश्मेश्वर महादेव मंदिर ( ghushmeshwar shiv temple ) को व्यक्तिगत संपत्ति बताते हुए गर्भगृह में आम जन के प्रवेश व पूजा-अर्चना से होने वाली गंदगी व अव्यवस्था और वैदिक परम्पराओं के उल्लंघन को देखते हुए गर्भ गृह में प्रवेश रोकने के लिए सक्षम न्यायालय में वाद पेश किया था। वाद की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने स्थगन आदेश देते हुए मामले की सुनवाई तक गर्भगृह में लोगों के प्रवेश पर रोक लगाने के आदेश दिए थे। इस संबंध में प्रतिवादी गंगाप्रसाद शर्मा, रघुनंदनसिंह राजावत व भंवरसिंह राजावात ने न्यायालय में प्रार्थना पत्र पेश कर वाद को खारिज करने की अपील की थी। मामले की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के वकीलों की जिरह व मामले में पेश दस्तावेजों के अवलोकन के पश्चात सक्षम न्यायालय ने वाद को खारिज करते हुए उपरोक्त आदेश दिए।
उल्लेखनीय है कि घुश्मेश्वर महादेव मंदिर को भगवान शिव के बारहवें ज्योतिर्लिंग ( Ghushmeshwar Jyotirlinga ) के रूप में माना जाता है। कहते हैं कि घुश्मा नामक एक ब्राह्मणी की शिवभक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसके नाम से ही यहां अवस्थित होने का वरदान दिया था। शिव मंदिर कितना पुराना है इसका ब्योरा यों तो उपलब्ध नहीं लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक यहां महमूद गजनवी ने भी आक्रमण किया था।
गजनवी से आक्रमण करते हुए युद्ध में मारे गए स्थानीय शासक चन्द्रसेन गौड व उसके पुत्र इन्द्रसेन गौड के यहां स्मारक मौजूद है। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का भी उल्लेख है। वहीं अलाउद्दीन खिलजी द्वारा मंदिर के पास ही बनाई गई मस्जिद इस स्थान की प्राचीनता की पुष्टि करती है। मंदिर के ठीक सामने शिवालय सरोवर का भी अलग ही महत्व है। कहते हैं कि घुश्मा प्रतिदिन 108 पार्थिव शिवलिंगों का पूजन कर इस तालाब में विसर्जित करती थी। इसका प्रमाण सालों पहले इस तालाब की खुदाई के दौरान मिले हजारों शिवलिंगों से भी मिलता है।
मौजूदा मंदिर परिसर का भव्य रूप दानदाताओं की बदौलत ही है। मंदिर में पहली बार मार्च 1988 में ट्रस्ट का पंजीयन देवस्थान विभाग से कराया गया। इसके बाद से ही धीरे-धीरे यहां जनसहयोग मिलता गया और निर्माण कार्य होता रहा।
बड़े पैमाने पर निर्माण से कहीं-कहीं मंदिर का मूल स्वरूप भी बिगड़ा है लेकिन मंदिर का गर्भगृह जस का तस है। शिवाड़ के इस मंदिर को स्थानीयता की परिधि से बाहर कर देश भर में प्रचारित करने का सबसे पहले प्रयास शिवाड़ निवासी और सेवानिवृत्त तहसीलदार बजरंग सिंह राजावत ने किया।
उन्होंने तत्कालीन राजपरिवार के पोथीखाने से लेकर शिवाड़ के बुजुर्गों के पास उपलब्ध ताम्रपत्र व अन्य दस्तावेज जुटाए। विभिन्न स्तर पर पत्रव्यवहार कर यहां बारहवां ज्योतिर्लिंग होने के प्रमाणिक तथ्य हासिल किए। मंदिर से सटा हुआ भव्य गार्डन भी दर्शनार्थियों के आकर्षण का केन्द्र रहता है।
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