एम्स में सेवाएं दे चुके बाल एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश बागडी ने बताया कि उनके पास पिछले तीन महीने में इस तरह के दो केस सामने आए हैं। इनमें एक 7 साल की बच्ची थी, उसकी हाइट और वजन औसत से कम था। हीमोग्लोबिन कम होने के कारण बच्चे को खून चढ़ चुका था। हालांकि जन्म के छह महीने के समय तक उसका वजन सामान्य बच्चों की तरह ही बढ़ा, लेकिन जैसे ही उसने खाना शुरू किया तो उसे परेशानियां होने लगी। अक्सर उल्टी और दस्त की शिकायत सामने आई। इस बीमारी को डायग्नोस करने पर पाया कि यह सीलिएक के लक्षण थे। जो आमतौर पर कम ही जगह बच्चों में पाए जाते हैं।
सीलिएक बीमारी में गेहूं में मौजूद प्रोटीन ग्लूटेन के विरुद्ध शरीर में एंटीबॉडीज बनती हैं। ये एंटीबॉडीज कई बार कुछ लोगों की आंतों में ग्लूटेन पचाने वाले तत्वों को डैमेज करने लगती हैं। जिससे वह व्यक्ति गेहूं और इससे बनी चीजों को पचा नहीं पाता। अधिकांश मामलों में जेनेटिक है, लेकिन कुछ मामलों में परिवार में किसी सदस्य को हुए बिना भी यह हो सकती है।
छह महीने की उम्र के बाद दिखना शुरू होते हैं लक्षण
इस बीमारी के लक्षण छह माह की उम्र के बाद दिखना शुरू हो जाते हैं। वजन नहीं बनना, लंबे समय तक दस्त होना, बच्चों को बार-बार उल्टियां होना, पेट का फूलना, सप्लीमेंट्स देने के बाद भी हीमोग्लाोबिन कम बने रहना, जल्दी थक जाना इसके प्रमुख लक्षण है। हालांकि कई बार ये लक्षण पेट की बीमारियों से भी संबंधित होते हैं। लेकिन खून की कमी बने रहना, कमजोरी रहना, दवाओं का असर नहीं होने पर इस बीमारी की जांच करवानी चाहिए। टीटीजी पॉजिटिव आने पर सीलिएक की पुष्टि होती है। अगर लड़कियों में वयस्क होने की उम्र तक सीलिएक का पता नहीं चलता, तो उनका शारीरिक विकास रुक जाता है। मां बनने में भी दिक्कतें आती हैं। लड़कों में भी सीलिएक के कारण शारीरिक विकास नहीं हो पाता। कई बार ऑटोइम्युन बीमारियां जैसे टाइप 1 डायबिटीज या स्किन-ब्रेन से जुड़ी हुई बीमारियां हो सकती हैं। अगर ग्लूटेन फ्री डाइट ना ली जाए तो आंतों का कैंसर हो सकता है। इसके अलावा हार्ट अटैक, आर्टरी डिजीज का खतरा रहता है।