जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते स्वास्थ्य सूचकांकों में सुधार नहीं हो पा रहा है। इसकी वजह से शिशु मृत्यु दर का ग्राफ घटने की बजाय दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। जिले के तीन एनबीएसयू और 34 एनबीसीसी सीएचसी, पीएचसी और डिलीवरी प्वॉइंट पर संचालित किए जा रहे हैं। इन इकाइयों में पीडि़त मासूमों को बेहतर और गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा प्रदान किया जाना है। हकीकत यह है कि पीडि़तों को प्राथमिक इलाज भी नहीं मिल पा रहा है।
सिविल अस्पताल मैहर, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नागौद और अमरपाटन में भी गंभीर नवजातों के उपचार के लिए एनबीएसयू इकाई स्थापित की गई है। प्रत्येक इकाइ में 9 बच्चे दाखिल किए जा सकते हैं। लेकिन प्रभारी चिकित्सक इकाई का राउंड भी नहीं करते हैं। अधिकांश समय इकाइयों से स्टाफ गायब रहता है। जबकि तीनों इकाइयों में प्रोटोकॉल के तहत 2 स्टाफ नर्स की 24 घंटे मौजूदगी अनिवार्य है।
सभी ३४ डिलीवरी प्वॉइंट में नवजातों के लिए एनबीसीसी इकाई बनाई गईं हैं। इकाइयां निष्क्रिय बनी हुई हैं। वहां स्थापना के बाद महीनों से कोई नवजात दाखिल नहीं किया गया है। जो सक्रिय हैं उनमें प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया जा रहा है। जीवन रक्षक उपकरण मेंटीनेंस के अभाव में खराब पड़े हैं। एनबीएसयू और एनबीसीसी में आधुनिक जीवन रक्षक उपकरण लगाए गए हैं। मेंटीनेंस के अभाव में उपयोग नहीं हो पा रहा है।
इन इकाइयों के बंद होने से ग्रामीण अंचल के बच्चों को इलाज नहीं मिल पाता है। ऐसे में परिजनों को जिला अस्पताल पर निर्भर होना पड़ता है। हालांकि जिला अस्पताल से भी अधिकांश बच्चों को रीवा या जबलपुर रेफर कर दिया जाता है। ऐसे में आर्थिक बोझ भी उठाना पड़ता है।