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सतना

भगवान राम ने यहां बिताए थे 11 साल 11 माह 11 दिन, जानिए 14 वर्ष के वनवास की असली कहानी

 मध्यप्रदेश और उत्तर-प्रदेश की सीमा पर बसी संतों की नगरी को चित्रकूट कहते है। विंध्य की पर्वत मालाओं पर चहुंओर प्रकृति और ईश्वर की अनुपम देन है।

सतनाSep 15, 2017 / 04:32 pm

suresh mishra

The real story of Lord Rama 14-year Vanvaas

The real story of Lord Rama 14-year Vanvaas

सतना। मंदाकिनी नदी के तट पर बसा चित्रकूट धाम भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में एक है। कहते है यहां भगवान राम १४ वर्ष के बनवास के दौरान माता सीता और अनुज लक्ष्मण के संग ११ वर्ष ११ माह ११ दिन बिताए थे। मध्यप्रदेश और उत्तर-प्रदेश की सीमा पर बसी संतों की नगरी को चित्रकूट कहते है। विंध्य की पर्वत मालाओं पर चहुंओर प्रकृति और ईश्वर की अनुपम देन है। वनों से घिरे चित्रकूट को अनेक आश्चर्यों की पहाड़ी कहा जाता है।
मंदाकिनी नदी के किनारे बने अनेक घाट और मंदिर में पूरे साल श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। खासकर हर एक अमावस्या को भक्तों का रेला लगाता है। दीपावली में तो दीपदान करने के लिए यहां देशभर से करोड़ों भक्त आते है। माना जाता है कि इसी स्थान पर ऋषि अत्री और सती अनसुइया ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसुइया के घर जन्म लिया था।
5 किमी. की परिक्रमा पर होती है मनोकामनाएं पूर्ण
धर्म नगरी चित्रकूट पहुंचने के बाद कामदगिरी पर्वत की परिक्रमा करने का खास महत्व है। परिक्रमा पथ की शुरूआत भगवान कामतानाथ के दर्शन करने के बाद से शुरू होता है। रामचरित मानस में भी कामदगिरी पर्वत का धार्मिक महत्व बताया गया है। श्रद्धालु कामदगिरी पर्वत की 5 किमी. परिक्रमा कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने की कामना करते हैं। जंगलों से घिरे इस पर्वत के तल पर अनेक मंदिर बने हुए हैं। चित्रकूट के लोकप्रिय कामतानाथ और भरत मिलाप मंदिर भी यहीं स्थित है।
इस रामघाट का रामायण में वर्णन
बाल्मीक रामायण में वर्णित श्लोक ‘चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसय तिलत देत रघुवीरÓ रामघाट के बारे में ही कहा गया है। दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालु की यात्रा रामघाट में स्नान करने के बाद शुरू होती है। मंदाकिनी नदी के तट पर बने रामघाट में अनेक धार्मिक क्रियाकलाप चलते रहते हैं। घाट में गेरूआ वस्त्र धारण किए साधु-संतों को भजन और कीर्तन करते देख बहुत अच्छा महसूस होता है। शाम को होने वाली यहां की आरती मन को काफी सुकून पहुंचाती है।
आज भी सीता मां के पद चिन्ह मौजूद
रामघाट से 2 किमी. की दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनार जानकीकुंड स्थित है। जनक पुत्री होने के कारण सीता को जानकी कहा जाता था। माना जाता है कि जानकी यहां स्नान करती थीं। जिस तट पर बैठकर माता सीता स्नान करती थी वहां आज भी उनके पद चिन्ह मौजूद है। बाहर से आने वाले भक्त माता के पद चिन्हों को देखकर भक्ती भाव का अनुशरण करते है। उसी तट पर श्रद्धालु स्नान करने के बाद माता को जल अर्पण करते है। जानकीकुंड के समीप ही राम जानकी रघुवीर मंदिर और संकट मोचन मंदिर है। जहां जनक नंदनी के बारे में भक्तों को संत-महात्मा बताते है।
कौऐ ने माता के पैर पर मारी चोंच
जानकीकुंड से कुछ दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनारे ही यह शिला स्थित है। माना जाता है कि इस शिला पर सीता के पैरों के निशान मुद्रित हैं। कहा जाता है कि जब वह इस शिला पर खड़ी थीं तो जयंत ने काक रूप धारण कर उन्हें चोंच मारी थी। इस शिला पर राम और सीता बैठकर चित्रकूट की सुन्दरता निहारते थे। यहां के प्राकृतिक और मनोरम द्रस्य को देखने के लिए भक्त खींचे चले आते है। हालांकि राम घाट के पहले मंदाकिनी नदी को पैसुनी नदी कहा जाता है। पैसुनी नदी का उद्गम सतना जिले के बरौंधा के पास हुआ था। प्रदेश सरकार नर्मदा-क्षिप्रा की तर्ज पर मंदाकिनी-नर्मदा को मेल कराने के लिए परियोजना बना रही है।
सती अनसुइया और गुप्त गोदावरी
सती अनसुइया आश्रम स्फटिक शिला से लगभग 4 किमी. की दूरी पर घने वनों से घिरा यह एकांत आश्रम स्थित है। इस आश्रम में अत्री मुनी, अनुसुइया, दत्तात्रेयय और दुर्वासा मुनी की प्रतिमा स्थापित हैं। वहीं चित्रकूट नगर से 18 किमी. की दूरी पर गुप्त गोदावरी स्थित हैं। यहां दो गुफाएं हैं। एक गुफा चौड़ी और ऊंची है। प्रवेश द्वार संकरा होने के कारण इसमें आसानी से नहीं घुसा जा सकता। गुफा के अंत में एक छोटा तालाब है जिसे गोदावरी नदी कहा जाता है। दूसरी गुफा लंबी और संकरी है जिससे हमेशा पानी बहता रहता है। कहा जाता है कि इस गुफा के अंत में राम और लक्ष्मण ने दरबार लगाया था।
हनुमान धारा और भरतकूप
पहाड़ी के शिखर पर स्थित हनुमान धारा में हनुमान की एक विशाल मूर्ति है। इस मूर्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता है। कहा जाता है कि यह धारा श्रीराम ने लंका दहन से आए हनुमान के आराम के लिए बनवाई थी। पहाड़ी के शिखर पर ही सीता रसोई है। यहां से चित्रकूट का सुन्दर नजारा देखा जा सकता है। जबकि भरतकूप में कूप का रहस्य आज भी वर्करार है। कहा जाता है कि भगवान राम के राज्याभिषेक के लिए भरत ने भारत की सभी नदियों से जल एकत्रित कर यहां रखा था। अत्री मुनि के परामर्श पर भरत ने जल एक कूप में रख दिया था। इसी कूप को भरत कूप के नाम से जाना जाता है। भगवान राम को समर्पित यहां एक मंदिर भी है।
ठहरे के लिए कम पैसे में अच्छी सुविधाएं
चित्रकूट ही एक ऐसा दर्शनीय स्थल है जहां बड़े लोगों से लेकर मध्यमवर्गीय परिवार भी चंद रुपए खर्चकर अच्छी सुविधाओं के साथ होटल और रेस्टोरेंटों में रात गुजार सकते है। यहां मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग का एक होटल है। इसके अलावा आधा सैकड़ा निजी होटल और एक सैकड़ा धर्म शालाएं है। एक परिवार को ठहरे के लिए ५०० से १००० रुपए अदा करने पड़ते है। चित्रकूट का मुख्य फल कंदमूल है। जिसको बनवास के समय भगवान राम खाया करते थे। इसी फल को बड़ी सिद्धत के साथ श्रद्धालु भगवान का प्रसाद समझकर खाते है।
आवागमन के साधन
वायु मार्ग-
चित्रकूट का नजदीकी एयरपोर्ट खजुराहो है। खजुराहो चित्रकूट से 185 किमी. दूर पड़ता है। हालांकि यहां कई भक्त बनारस और लखनऊ एयरपोर्ट का सहारा लेकर भगवान राम की नगरी चित्रकूट पहुंचते है।
रेल मार्ग-
चित्रकूट से 8 किमी. की दूरी पर कर्वी निकटतम रेलवे स्टेशन है। जबकि सतना रेलवे स्टेशन ८० किमी. दूर पड़ता है। इलाहाबाद, जबलपुर, दिल्ली, झांसी, हावड़ा, आगरा आदि शहरों से यहां के लिए रेलगाडय़िां चलती हैं।
सड़क मार्ग-
चित्रकूट के लिए इलाहाबाद, बांदा, झांसी, महोबा, कानपुर, छतरपुर, सतना, फैजाबाद, लखनऊ, मैहर आदि शहरों से नियमित बस सेवाएं हैं।

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