नागौद से कांग्रेस ने डॉ रश्मि सिंह पटेल पर दांव लगाया है। 2018 के चुनाव के पहले रश्मि भाजपा में रहीं। टिकट नहीं मिलने पर वे निर्दलीय चुनाव लड़ी और 25700 वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहीं। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन की। उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता टिकट की उम्मीद के साथ ही लिया था। कांग्रेस में भी कहीं न कहीं रश्मि को मिले मत के बाद सकारात्मकता रही होगी।
सुखेंद्र सिंह बना पर कांग्रेस ने तीसरी बार भरोसा जताया है। 2013 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर लड़े और विधायक चुने गए। 2018 के चुनाव में वे हार गए। इन्होंने संघर्ष के जरिए राजनीति में अपनी पहचान बनाई। साधारण परिवार से निकले सुखेंद्र ने क्षेत्र में कई बड़े जनांदोलन किए। मऊगंज को जिला बनाने के लिए करीब 10 साल से संघर्ष कर रहे थे। मऊगंज में कांग्रेस पिछले कई चुनावों से लगातार काफी कमजोर होती जा रही थी। बसपा सहित दूसरे दलों की स्थिति यहां मजबूत रही है। अजय सिंह के करीबी माने जाते हैं।
युवा कांग्रेस से शुरू की राजनीति: सुखेंद्र सिंह ने राजनीतिक शुरुआत युवा कांग्रेस से की थी। हनुमना में जनपद उपाध्यक्ष चुने गए। 2013 में जीतकर कांग्रेस को तब नई संजीवनी दी जब यहां पार्टी तीसरे नंबर के लिए संघर्ष कर रही थी। विधायक चुने जाने के बाद मऊगंज को जिला बनाने और क्षेत्र में बाणसागर बांध का पानी लाए जाने के लिए कई आंदोलन कर गिरफ्तारी दी।
क्षेत्र में सक्रियता का भी मिला लाभ
रश्मि सिंह क्षेत्र में सक्रिय रहीे। कभी सामाजिक कार्यक्रमों के जरिए, कभी मेडिकल कैम्प के जरिए तो कभी राजनीतिक कार्यक्रमों की आड़। ओबीसी के बहुसंख्य पटेल मतदाताओं के लिए भी एक संदेश देने की कोशिश की गई है।
राजनीतिक कॅरियर: जिला पंचायत सतना की उपाध्यक्ष रहीं। 2018 में नागौद से निर्दलीय चुनाव लड़ कर 25700 वोट हासिल किए।
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