सतना जिले की स्थिति देखें तो यहां 80.85 फीसदी गांवों में गिरदावरी का काम शून्य है। 17.22 फीसदी गांवों में 50 फीसदी से कम गिरदावरी का काम हुआ है। 1.47 फीसदी गांव ही ऐसे हैं जहां गिरदावरी का काम 50 फीसदी से ज्यादा हो सका है। जिले में 5 के लगभग गांव ऐसे हैं जहां गिरदावरी 90 फीसदी से ज्यादा है। कुल मिला कर स्थिति देखें तो जिले में गिरदावरी के हालात बदतर है। इस मामले में सीएलआर ने नाराजगी जाहिर की है।
कृषि से जुड़ी ज्यादातर योजनाओं को ऑनलाइन करने के बाद इनकी प्रविष्टियां भी ऑनलाइन हो गई है। इसमें इ-उपार्जन, फसल बीमा, किसान क्रेडिट कार्ड, फसल हानि प्रमुख हैं। ऐसे में जरूरी है कि पटवारियों द्वारा गिरदावरी का काम प्रमुखता से करते हुए इसे मोबाइल ऐप के माध्यम से आनलाइन किया जाए। अगर समय पर पटवारियों द्वारा यह प्रविष्टियां नहीं की जाएंगी तो किसानों को विभिन्न शासकीय योजनाओं के लाभ से वंचित होना पड़ेगा। इसमें समर्थन मूल्य पर फसल खरीदी प्रमुख है।
गिरदावरी न होने की पीछे सिर्फ पटवारियों की लापरवाही है। हालांकि इस मामले में जब भी पटवारियों से बात की जाए तो वे तमाम बहाने बनाते दिखते हैं लेकिन स्थिति यह है कि जिले में हर मामले में स्थिति कमजोर है। चाहे सीमांकन की स्थिति देखी जाए या फिर बंटवारे की। कुल मिलाकर जिले के पटवारी मनमानीराज की स्थिति में काम कर रहे हैं और इन पर कोई लगाम भी नहीं है। जिला वैसे भी पटवारियों के मामले में बदनाम रहा है। यहां के पटवारियों का मामला विधानसभा तक पहुंच चुका है।
फैसल गिरदावरी प्रतिवर्ष की जाने वाली एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो वर्ष में दो बार रबी एवं रबी सीजन की बुवाई के पश्चात की जाती है एवं भूअभिलेखों में दर्ज की जाती है। इसमें पटवारी संबंधित खेत में बोई गई फसल और रकवा का उल्लेख करते हैं। यह जानकारी कई मामलों जैसे फसल बीमा, प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान की भरपायी, बैंक ऋण, योजनाओं के लाभ लेने आदि में महत्वपूर्ण होती है। अगर यह समय पर हो जाती है फसल प्रबंधन, विपणन आदि से संबंधित तैयारियां भी समय पर हो जाती है।