40 साल से शहर में लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां बेचने वाले मोहन कहते हैं कि हर बार मूर्तियों के दाम बढ़ रहे हैं। एक आना में मिलने वाली मूर्तियों के दाम पांच हजार तक हो गए हैं। पर इससे खरीदारों में कमी नहीं आई। बल्कि, वे अपनी क्षमता अनुसार मूर्तियों को खरीदना पसंद कर रहे हैं। अंतर इतना आया है कि पहले जहां पूरे बाजार में प्योर ट्रेडिशनल मूर्तियों की भरमार होती थी, अब डिजाइनर रंग-बिरंगी मूर्तियां देखने को मिल रही हैं।
एक दौर था जब शहर में गिनी-चुनी दुकानें मूर्तियों की हुआ करती थीं। लोग वहीं से ही खरीदारी करते थे। अब शहर और गांव के गली-कूचों की दुकानों ने पेशेवर व्यापारियों की कमर तोड़ दी हैं। उनका कहना है कि नगर निगम की अनदेखी के कारण हर कोई अब जहां मन चाहा वहां दुकान लगा लेता है। अधिकारी अंजान बने हुए हैं। पेशेवर व्यापारियों का शासन के प्रति रोष बना हुआ है। उनका कहना है कि त्योहारों के मद्देनजर जिला प्रशासन को प्रॉपर तरीके से गाइड लाइन बनानी चाहिए, जिससे पुराने व्यापारियों को निराशा हाथ न लगे।
गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों के व्यापार में भी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही। पांच साल से शहर में प्रतिस्पर्धा के चलते कस्टमर को अपनी ओर अट्रैक्ट करने के लिए अलग-अलग शहर की लोकप्रिय मूर्तियों को उपलब्ध कराया जा रहा। बाजारों में कोलकाता, जयपुर और लखनऊ की मूर्तियों की भरमार है। कोलकाता की मूर्तियों में भगवान को कपड़े पहनाए गए हैं और उनकी नक्काशी ऐसी तैयार की गई है जैसे ओरिजनल मूर्तियां हो। जयपुर की मूर्तियों में स्टोन का काम काफी अच्छा देखने को मिल रहा। लखनऊ की मूर्तियों में मोतियों का काम आकर्षक लग रहा है।
जानकार बताते हैं, पहले ज्यादातर लोग संयुक्त परिवार के साथ रहते थे। आज की महंगाई के कारण सब लोग अपने-अपने रोजगार में लगे हुए है। कोई गांव में तो कोई शहर में रहता है। पहले जहां संयुक्त परिवार के लोग एक साथ मिलकर एक ही लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की खरीदारी करते थे, ठीक उसके विपरीत अब एक ही परिवार के कई लोग अलग-अलग मूर्तियों की पूजा अपने परिवार के साथ करते हैं।
लिटेन विश्वास, विक्रेता
कालिका प्रसाद, विक्रेता
मोहन अग्रवाल, विक्रेता