पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारियों ने कार्यालय में बैठकर गौशालाओं में पल रहे अशक्त पशुओं की गणना कर अनुदान के लिए जो सूची तैयार की है उसमें दर्ज गौशालाओं में पल रहे पशुओं की संख्या और गौशाला में संरक्षित पशुओं की संख्या में आधे का अंतर है। यदि जिला प्रशासन जिले की क्रियाशील गौशालाओं को अनुदान देने के लिए तैयार सूची के आधार पर गौशाला में रखे गए आवारा पशुओं की जांच कराए, तो विभाग के अधिकारियों की गर्दन फंस सकती है।
आवारा गौवंश संरक्षण के नाम पर खेल
पत्रिका द्वारा की गई पड़ताल में आवारा घूम रहे गौवंश को निजी गौशालाओं में संरक्षित करने के नाम पर अनुदान हड़पने के बड़े खेल का खुलासा हुआ है। जिले में क्रियाशील अधिकांश गौशालाओं में विदेशी नस्ल की दुधारू गाय पाली जा रही हैं। सरकार से अनुदान पाने गौशाला समितियों के पदाधिकारी पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारियों से मिलीभगत कर गौशाला में खरीद कर रखी गई विदेशी गायों का नाम भी अशक्त व असहाय गायों की सूची में दर्ज करा हर साल लाखों रुपए का अनुदान हड़प रहे हैं।
हर साल लाखों रुपए का अनुदान
प्रदेश सरकार देसी नस्ल के गौवंश को गौशालाओं में संरक्षित करने जिले की क्रियाशील गौशालाओं को लाखों रुपए का अनुदान देती है। इसके बावजूद गौशालाओं के बाड़े में कैद असहाय गौवंश भूख-प्यास से तड़प कर मर रहे हैं। अनुदान के चारा एवं पशु आहार को खाकर विदेशी नस्ल की गाय गौशाला समितियों को मालामाल कर रही हंै।
फैक्ट फाइल
क्रियाशील गौशालाएं 16 कुल गौवंश 8036
अशक्त गौवंश 7707 अनुदान राशि 52.31 लाख
चारा-भूसा के लिए 39.23 लाख पशु आहार के लिए 13.08 लाख