मैहर त्रिकूट पर्वत पर विराजमान मां शारदा की महिमा बड़ी ही निराली है। वैसे तो यहां वर्षभर भक्तों की भीड़ लगी रहती है। लेकिन शारदेय नवरात्रि में दर्शन पूजन का खास महत्व है। मैहर मेले की शुरुआत भी भक्तों ने कुछ इसी तरीके से की और श्रद्धालुओं का सैलाब फूट पड़ा है। मैहर शारदा धाम में अब तक 6 लाख से उपर भक्तों ने माथा टेककर आशीर्वाद लिया। मैहर शारदा धाम में भारत के कई राज्यों से आए हुए भक्तों ने माता के दर पर हाजरी लगाई। लेकिन पहली बार भारी संख्या में युवा वर्ग भी भक्ति के प्रति आस्था दिखाई है। दूर दराज से आए भक्तों ने माता का आशीर्वाद लिया और अपनी खुशहाली की कामना की। माई के दर पर पहुंचने के लिए भक्तों ने सीढिय़ों के साथ-साथ समिति की वैन और रोपवे का भी सहारा लिया।
नवरात्रि के चलते मैहर स्टेशन में यात्रियों की खासी भीड़भाड़ रहती है। यात्री प्रतीक्षालय तो ठीक प्लेटफार्म तक में बैठने की जगह नहीं मिलती। ट्रेन पकडऩे की जल्दी इतनी रहती है कि पैदल ओवरब्रिज की बजाय कई यात्री रेललाइन पर चलकर ही एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म तक आते-जाते हैं। हादसे का खतरा बना रहता, सुरक्षा में तैनात जवान भी उन्हें रोकने की हिमाकत नहीं करते।
मां शारदा की मूर्ति के चरण के नीचे अंकित एक प्राचीन शिलालेख है। जो मूर्ति की प्राचीन प्रमाणिकता की पुष्टि करता है। मैहर के पश्चिम दिशा में त्रिकूट पर्वत पर शारदा देवी व उनके बायीं ओर प्रतिष्ठापित श्रीनरसिंह भगवान की पाषाणमूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा है। बताया जाता है कि लगभग 2000 वर्ष पूर्व विक्रमी संवत् 559 शक 424 चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, दिन मंगलवार, ईसवी सन् 502 में स्थापित कराई गई थी। मां शारदा की स्थापना तोरमान हूण के शासन काल में राजा नुपुल देव ने कराई थी।
मैहर केवल शारदा मंदिर के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि इसके चारों ओर प्राचीन धरोहरें बिखरी पड़ी हैं। मंदिर के ठीक पीछे इतिहास के दो प्रसिद्ध योद्धाओं व देवी भक्त आल्हा-उदल के अखाड़े हैं। यहीं एक तालाब और भव्य मंदिर है, जिसमें अमरत्व का वरदान प्राप्त आल्हा की तलवार उन्ही की विशाल प्रतिमा के हाथ में थमाई गई है।