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सतना

किसी के न गाने पर ‘वेश्या’ ने गाया राष्ट्र गीत, झंडे को सलाम करने उमड़ी भीड़

आजाद मैदान में लहराया था सतना का पहला तिरंगा, तीन लोग पकड़कर चल रहे थे जूलूस का झंडा, पहले का आजाद मैदान आज जाना जाता है सुभाष पार्क के नाम से।

सतनाAug 16, 2016 / 12:09 pm

suresh mishra

7 meters flag

7 meters flag

सुरेश मिश्रा @ सतना। स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में देश-प्रदेश सहित जिलेभर में देशभक्ति के तराने गूंज रहे हैं। 15 अगस्त 2016 यानि सोमवार को पूरे जिले में तिरंगा फहराया गया। लेकिन, जिले के ज्यादातर युवा नहीं जानते है कि सतना में यह तिरंगा हमें कैसे मिला? यह पहली बार कहां फहराया गया था।

सतना के इतिहासकार चिंतामणि मिश्रा बताते है कि 15 अगस्त 1947 को सतना में 7 मीटर का झंडा फहराया गया था। पहले का आजाद मैदान आज सुभाष पार्क के नाम से जाना जाता है। जहां सतना में आजादी का पहला तिरंगा लहराया था।

7 meters flag

(जवाहर लाल नेहरू के साथ सतना के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शिवानंद श्रीवास्तव)

तिरंगे फहराने का सौभाग्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं बाद में विध्यप्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष शिवानंद श्रीवास्तव को प्राप्त हुआ था। 7 मीटर के बजनी झंडे को पकड़कर रामदास हलवाई, बुग्गी महाराज, स्वामी प्रसाद दीक्षित थाम कर चल रहे थे। आजादी का जूलूस सतना शहर के चौक बाजार, लालता चौक, शास्त्री चौक से होकर निकला था।

नेहरू के भाषण का हुआ था प्रसारण
14 अगस्त 1947 को दिन ही स्वतंत्रता की घोषणा हो गई थी। स्वतंत्रता के भाषणों का रात 12 बजे रेडियो में प्रसारण सतना में भी हुआ था। लाउड स्पीकर की व्यवस्था सरदार ग्रामाफोन हाउस ने कराई थी। जिनके दर्जनों लाउड स्पीकर सतना बाजार में लगाए गए थे। लोग पूरी रात जागकर जवाहर लाल नेहरू के भाषण सुन रहे थे।

वेश्या ने गाया था राष्ट्रीय गीत
चिंतामणि मिश्रा की मानें तो 15 अगस्त 1947 की सुबह राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम गायन के लिए कोई आगे नहीं आया तो वेश्या पंखुडी जान ने राष्ट्रीय गीत गाया था। उसकी देशभक्ति के आगे सभी लोग बेहद उत्साहित हुए थे और आजाद मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। लोग पंखुड़ी जान के जब्बे को सलाम कर रहे थे।

आजाद मैदान के लिए आंदोलन
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शिवानंद श्रीवास्तव ने आजाद मैदान के लिए कई आंदोलन किए है। तत्कालीन रीवा के राजा ने आजाद मैदान को बेंच दिया था। जिसके लिए शिवानंद 10 दिनों तक आमरण अनशन किए। बाद में नेहरू के कहने पर आजाद मैदान मुख्त हुआ तब शिवानंद का अनशन खत्म हुआ था।

अब वो बात कहां
समाज के वरिष्ट जन बतातें है कि पहले के स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्रता दिवस में लोगों के अंदर देशभक्ति झलकती थी। अब ओ बात कहां बची है। अब राज्य सरकारें खानापूर्ति कर कार्यक्रम कर रही है। लोगों के अंदर पहले जैसी देशभक्ति नहीं दिख रही है।

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