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46 साल पहले संभल में क्या हुआ था? क्यों किया हिन्दुओं ने पलायन? जानें 1978 के दंगे की दर्दनाक कहानी

Sambhal Violence History: संभल मामले में मंदिर मिलने के बाद एक नया मोड़ आ गया है। अब शासन-प्रशासन सहित आम जनता भी सीधे 46 साल पहले के इतिहास की बात कर रही है। ऐसा क्या हुआ था संभल में 46 साल पहले? आइये बताते हैं संभल की अनकही दास्तां। 

सम्भलDec 17, 2024 / 03:01 pm

Nishant Kumar

Sambhal Violence History: साल 1975 से 1980 तक भारतीय राजनीति का सबसे कठिन समय था। केंद्र में सरकारों की उठापटक और राज्य सरकार में अवमाननाओं के दौर में सभी राजनीतिक दल केंद्र सरकार को चुनौती दे रहे थे। इसी बीच गढ़ी जा रही थी केंद्र के नए नेतृत्व की नयी कहानी। जनता पार्टी अपने उत्तरार्ध पर थी और उतनी ही ताकत से चुनाव में प्रदर्शन किया। 

1977 में देश-प्रदेश का राजनीतिक माहौल

History of Sambhal Violence
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राम नरेश यादव
23 जून 1977 का दिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम दिन था। राष्ट्रपति शासन खत्म होने के बाद राम नरेश यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। संभल से शांति देवी को जनता पार्टी के टिकट पर संसद भेजा गया। शफीकुर रहमान बर्क को जनता पार्टी के ही टिकट पर विधायक चुना गया। 

हाल-ए-संभल 

Sambhal Violence History
संभल में अमूमन कई हिंसाएं देखी गई हैं। इतिहासकारों और एकेडेमिक्स की भाषा में संभल को ‘वर्चुअल क्रेमाटोरियम’ (आभासी श्मशान) कहा जाता है। साल 1935, 1947 का विभाजन और 1978 में यहां भीषण नरसंहार हुआ। साल 1979 प्रकाशित एस. एल. एम. प्रेमचंद की किताब ‘मॉब वायलेंस इन इंडिया’ के मुताबिक 1978 में मुरादाबाद जिले में हिंदुओं की संख्या 30% से भी कम थी।  

Sambhal: दो बड़े दंगे 

इस किताब में ये बात दर्ज है कि साल 1976 और 1978 में संभल में दो बड़े दंगे हुए। किताब के मुताबिक साल 1976 में शाही जामा मस्जिद के इमाम मोहम्मद हुसैन की हत्या एक हिन्दू व्यक्ति ने कर दी। इमाम की हत्या के बाद साम्प्रदायिक मारकाट मच गई और कुछ हिन्दू संभल से बाहर चले गए। 

1978 का क्या है पूरा मामला? 

Sambhal Violence History
साल 1978 का दंगा राजनीतिक और सोची-समझी साजिश बताई जाती है। संभल में नगर पालिका कार्यालय के पास महात्मा गांधी मेमोरियल डिग्री कॉलेज था। कॉलेज की मैनेजिंग कमिटी के नियमानुसार प्रबंधन किसी से भी 10 हजार रुपये का चंदा लेकर उसे कॉलेज कमेटी का आजीवन सदस्य बना सकती थी। संभल के ट्रक यूनियन ने डिग्री कॉलेज को 10 हजार रुपये का चेक भेज दिया जो मंजर शफी के नाम से था। बाद में ट्रक यूनियन ने ये साफ किया कि मंजर सफी को इसका कोई अधिकार नहीं है। इसके बाद डिग्री कॉलेज के तत्कालीन उपाध्यक्ष संभल के SDM थे। उन्होंने मंजर सफी को सदस्यता देने से इंकार कर दिया। 

मंजर सफी समर्थकों ने क्या किया? 

सदस्यता न मिलने से नाराज मंजर सफी और उनके समर्थकों ने संभल में तबाही मचा दी। एस. एल. एम. प्रेमचंद की किताब के अनुसार मंजर सफी के समर्थकों ने कई अफवाह उड़ाई जैसे कि मंजर शफी मारे गए, मस्जिद तोड़ दिया गया, पेश-ए-इमाम को जला दिया गया इत्यादि।  

पान के दुकानदार की हुई हत्या 

Sambhal Violence History
मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद मंजर शफी को हत्या, सांप्रदायिक हिंसा भड़काने और भड़काऊ बयानबाजी के आरोप में जेल भेज दिया। उसी साल बाहर आने के बाद उन्होंने बंद का आह्वान किया। उनके इस आह्वान का विरोध एक हिंदू पान दुकान के मालिक विनोद प्रमोद ने किया। मौके ओर ही विनोद प्रमोद समेत 3 हिन्दु और एक मुस्लिम की हत्या कर दी गई थी। 

हिन्दुओं का पलायन  

संभल में मची इस मारकाट के बाद संभल की हिन्दू आबादी ने पलायन करना शुरू कर दिया। संभल से मुरादाबाद, लखनऊ और आगरा की और हिन्दू जा कर बसने लग गए। कुछ लोग संभल के नजदीकी कस्बों में रहने लगे। कुछ लोगों ने अपना व्यापार संभल में रखा लेकिन बाहर रहते थे। 

40 साल बाद मिला मंदिर 

संभल में मिला मंदिर एक हिन्दू परिवार के कुलदेवता का मंदिर बताया जा रहा है। इतिहासकारों और शोधार्थियों के अनुसार मंदिर के आसपास पहले हिन्दुओं का परिवार रहता था जो हिंसा के बाद अपने घर बेचकर किसी दूसरी जगह चले गए। 
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संभल निवासियों ने क्या कहा? 

विष्णु शरण रस्तोगी ने बताया कि 1978 में अचानक से दंगा हुआ था। इसमें कई हिंदू समाज के लोगों की जान गई थी। इससे उन इलाकों में ज्यादा भय था जहां हिंदू आबादी कम थी और मुस्लिम आबादी ज्यादा थी। कई ऐसे भी परिवार थे जिनके पास किराए पर रहने की भी स्थिति नहीं थी। उन परिवारों को उन्होंने जगह दी। इसके बाद जब उन्होंने अपने मकान बेचे तो दूसरे इलाके में घर ले सके। बताया कि दंगे के समय मकान से महत्वपूर्ण अपनी जान थी इसलिए लोगों ने खग्गू सराय से पलायन करना ही बेहतर समझा था। 

पुलिस ने बरामद की मूर्तियां 

संभल में शिव-हनुमान मंदिर के पास कुएं से तीन मूर्तियां बरामद की गईं, जिसे कथित तौर पर 1978 के बाद पहली बार 14 दिसंबर को फिर से खोला गया था। संभल के एएसपी श्रीश चंद्र ने कहा कि ये टूटी हुई मूर्तियां हैं जो कुएं की खुदाई के दौरान मिली थीं। इसमें भगवान गणेश की भी एक मूर्ति है। दूसरी भगवान कार्तिकेय की लगती है। इस बाबत अधिक जानकारी मांगी जा रही है। दरअसल कुएं में मलबा और मिट्टी थी, जब इसे खोदा गया तो मूर्तियों का पता चला। क्षेत्र को सुरक्षित कर दिया गया है ताकि खुदाई आसानी से की जा सके। 

कैसे मिला ये 46 साल पुराना मंदिर? 

दरअसल संभल में जिलाधिकारी और संभल एसपी की ओर से बिजली चोरी की जांच की जा रही थी। इसी के दौरान अधिकारियों को बंद पड़ा हुआ ये मंदिर दिखा। मंदिर का गेट खुलवाया गया और मंदिर की साफ-सफाई की गई। दावा किया जा रहा है कि ये मंदिर 1978 के बाद अब खोला गया है। 46 साल से बंद पड़े मंदिर को आज संभल प्रशासन ने खोल दिया है। 

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